रविवार, 6 फ़रवरी 2011

क्या फैसला करते?


सांसों की ही फिक्र की और बिक गई सब जिन्दगी
सांसे थीं या थी बला, क्या फैसला करते?
उलझे-क्या करें, ना करें? हमेशा अंजामों से डरे,
मौत तक बस यही चला, क्या फैसला करते?

शराफतें पाले सीने में, बस घिरे रहे कमीनों में
आस्तीनों में विष पला, क्या फैसला करते?
दूसरों को क्यों दोष दें, गर हिम्मत ना अपना होश दे
अपनी ही हसरतों ने छला, क्या फैसला करते?

डर बसा रोम-रोम में, ध्यान हर घड़ी था विलोम में
धड़कनें थीं कि जलजला, क्या फैसला करते?
हर बार धोखा, हर बार गम, हर बार इक संगदिल सनम
अपने दिल बस ना चला, क्या फैसला करते?

12 टिप्‍पणियां:

Amit Chandra ने कहा…

कमाल की रचना है आपकी। पहली बार आना हुआ आपके ब्लाग पर। परन्तु आना सफल हुआ। आभार।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

prabhawshali rachna

नीरज गोस्वामी ने कहा…

दूसरों को क्यों दोष दें, गर हिम्मत ना अपना होश दे
अपनी ही हसरतों ने छला, क्या फैसला करते?

वाह...वाह...वाह...लाजवाब रचना...आप बहुत उम्दा लिखते हैं...बधाई स्वीकारें.

नीरज

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

लाजवाब रचना......सशक्त विचारो को लिए .......

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

ek prabhavshali rachna.......:)

Creative Manch ने कहा…

हर बार धोखा, हर बार गम, हर बार इक संगदिल सनम
अपने दिल बस ना चला, क्या फैसला करते?

वाह..वाह...बहुत खूब
बहुत ही सुन्दर लिखा है
आज पहली बार आये ... अब आते रहेंगे

आभार

बेनामी ने कहा…

बहुत सुंदर और सार्थक

सांसों की ही फिक्र की और बिक गई सब जिन्दगी
सांसे थीं या थी बला, क्या फैसला करते?

संजय भास्‍कर ने कहा…

लाजवाब रचना.....बहुत सुंदर और सार्थक

संजय भास्‍कर ने कहा…

वसन्त की आप को हार्दिक शुभकामनायें !

Minakshi Pant ने कहा…

इसी का नाम असल जिन्दगी है जहाँ हम हर तरह के फैसलें लेते हैं और उन्हें जीते भी हैं पर फिर भी लगता है की काश .........हमने ये फ़ेसला कुछ इस तरह लिया होता !
खुबसूरत रचना !

निर्मला कपिला ने कहा…

उलझे-क्या करें, ना करें? हमेशा अंजामों से डरे,
मौत तक बस यही चला, क्या फैसला करते?
बहुत दिन बाद देखा आपका ब्लाग। बहुत अच्छी रचना। बसंतोत्सव की आपको भी बधाई।

DR.ASHOK KUMAR ने कहा…

वाह ! अद्भुत रचना ।
एक एक शब्द दिल मेँ उतर गया ।
लाजबाव प्रस्तुति । बधाई !

" देखे थे जो मैँने ख्याब.........गजल "

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