Wednesday 16 February 2011

जमाने की हकीकतें ना आयें रास क्या करें



जमाने की हकीकतें ना आयें रास क्या करें
अजीज भी पराया सा, अब किससे आस, क्या कहें

जब मिला-जो भी मिला, मतलब का ही रोगी मिला
ये किस्सा था हर रिश्ते का, बस और खास क्या कहें

जिससे बड़ी उम्मीदें थीं, वो भी मिला पर शर्तों पर
अब नाउम्मीदी कैसी है?, क्यों दिल उदास क्या कहें?

सेहत तो भली दिखती है, सूरत पे भी मुस्कुराहटें
पर दिल के हैं अहसास क्या, होश-ओ-हवास क्या कहें,

यही हर घड़ी सवाल था, हो जिन्दगी का हश्र क्या?
इक मौत "अजनबी" तय लगी, बाकी कयास क्या कहें

10 comments:

संजय भास्‍कर said...

सोचा की बेहतरीन पंक्तियाँ चुन के तारीफ करून ... मगर पूरी नज़्म ही शानदार है ...आपने लफ्ज़ दिए है अपने एहसास को ... दिल छु लेने वाली रचना ...

हिमांशु डबराल Himanshu Dabral (journalist) said...

bahut khub...

रश्मि प्रभा... said...

जब मिला-जो भी मिला, मतलब का ही रोगी मिला
ये किस्सा था हर रिश्ते का, बस और खास क्या कहें
kuch aisi hi soch se gujar rahi thi, padhker sukun mila

नीरज गोस्वामी said...

जब मिला-जो भी मिला, मतलब का ही रोगी मिला
ये किस्सा था हर रिश्ते का, बस और खास क्या कहें

Behtariin rachna...

Neeraj

shivank said...

bahut achha likha hai aapne

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा!! वाह!

Kulwant Happy said...

यही हर घड़ी सवाल था, हो जिन्दगी का हश्र क्या?
इक मौत "अजनबी" तय लगी, बाकी कयास क्या कहें

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बहुत सुन्दर ! पहली पंक्ति का अंतिम शब्द शायद "कहें" होना चाहिए था ... बाकी पंक्तियों कि तरह ...

कविता रावत said...

यही हर घड़ी सवाल था, हो जिन्दगी का हश्र क्या?
इक मौत "अजनबी" तय लगी, बाकी कयास क्या कहें
,,,बहुत उम्दा रचना ...

amrendra "amar" said...

जिससे बड़ी उम्मीदें थीं, वो भी मिला पर शर्तों पर
अब नाउम्मीदी कैसी है?, क्यों दिल उदास क्या कहें?


itni gehraiyo me jaker bahar kaise nikalte hai aap , kuch hume bhi bataye .behtreen prasttuti k liye aabhar

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