जमाने की हकीकतें ना आयें रास क्या करें
अजीज भी पराया सा, अब किससे आस, क्या कहें
जब मिला-जो भी मिला, मतलब का ही रोगी मिला
ये किस्सा था हर रिश्ते का, बस और खास क्या कहें
जिससे बड़ी उम्मीदें थीं, वो भी मिला पर शर्तों पर
अब नाउम्मीदी कैसी है?, क्यों दिल उदास क्या कहें?
सेहत तो भली दिखती है, सूरत पे भी मुस्कुराहटें
पर दिल के हैं अहसास क्या, होश-ओ-हवास क्या कहें,
यही हर घड़ी सवाल था, हो जिन्दगी का हश्र क्या?
इक मौत "अजनबी" तय लगी, बाकी कयास क्या कहें
10 टिप्पणियां:
सोचा की बेहतरीन पंक्तियाँ चुन के तारीफ करून ... मगर पूरी नज़्म ही शानदार है ...आपने लफ्ज़ दिए है अपने एहसास को ... दिल छु लेने वाली रचना ...
bahut khub...
जब मिला-जो भी मिला, मतलब का ही रोगी मिला
ये किस्सा था हर रिश्ते का, बस और खास क्या कहें
kuch aisi hi soch se gujar rahi thi, padhker sukun mila
जब मिला-जो भी मिला, मतलब का ही रोगी मिला
ये किस्सा था हर रिश्ते का, बस और खास क्या कहें
Behtariin rachna...
Neeraj
bahut achha likha hai aapne
बहुत उम्दा!! वाह!
यही हर घड़ी सवाल था, हो जिन्दगी का हश्र क्या?
इक मौत "अजनबी" तय लगी, बाकी कयास क्या कहें
बहुत सुन्दर ! पहली पंक्ति का अंतिम शब्द शायद "कहें" होना चाहिए था ... बाकी पंक्तियों कि तरह ...
यही हर घड़ी सवाल था, हो जिन्दगी का हश्र क्या?
इक मौत "अजनबी" तय लगी, बाकी कयास क्या कहें
,,,बहुत उम्दा रचना ...
जिससे बड़ी उम्मीदें थीं, वो भी मिला पर शर्तों पर
अब नाउम्मीदी कैसी है?, क्यों दिल उदास क्या कहें?
itni gehraiyo me jaker bahar kaise nikalte hai aap , kuch hume bhi bataye .behtreen prasttuti k liye aabhar
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