दो सौ साल पहले व्यापारी अपने संस्थानों यानि कंपनियों की औसत उम्र पीढ़ियों में गिना करते थे। आज एक संस्थान की औसत उम्र 30 वर्ष मानी जाती है, और भविष्य के अनुमान कहते हैं कि अगले 20 सालों में यह उम्र घटकर 5 वर्ष रह जायेगी। यह आंकड़े हम में से प्रत्येक व्यक्ति के जीवन पर गहरा असर डालते हैं क्योंकि एक आम आदमी की नौकरी धंधे की उम्र औसतन 50 साल होती है।
आधुनिक व्यावसायिक इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि हममें से प्रत्येक व्यक्ति पर यह दबाव है कि वो इस हकीकत के प्रभाव जाने कि हम अपने ही व्यापार यानि अपने आपको ही बेचने खरीदने में लगे हुए हैं। हालांकि अपने को ही खरीदने बेचने के व्यवसाय में सीधे-सीधे न लगे होकर.... हम अपना समय बेचते हैं, इस समय की कीमत हमारी उत्पादकता - यानि हमारी कुशलता या ज्ञान की गुणवत्ता द्वारा निर्धारित होती है। हम अपने ज्ञान को कितने प्रभावकारी ढंग से क्रियान्वित कर पा रहे हैं यही तथ्य हमारी काम धंधे की आयु में हमारे बाजार मूल्य को ऊंचाईयों की ओर ले जा सकता है।
आपके ज्ञान के उत्पाद की गुणवत्ता अकेले आप के निष्पादन में पर्याप्त नहीं क्योंकि आप के संभावित ग्राहकों में वे कम्पनियां हैं जो अपनी प्रकृति से ही लोगों की टीमों द्वारा बनी हैं। ऐसे लोगों की टीमों से जिनके पास विविध प्रकार का ज्ञान और कौशल होता है। इसलिए आपके उत्पादता के मूल्य की असली माप सीधे सीधे इस बात से जुड़ी है कि आप उस समय कितनी सक्षमता, प्रभावपूर्ण तरीके से योगदान कर सीधे परिणाम दे रहे हैं या एक अर्थवान सहभागिता उस टीम में करते हैं जिसके अंतर्गत आप संचालित किये जा रहे हैं।
अक्सर उस उम्र से जब हम अपने आप से यह कहना शुरू करते हैं कि ”अब कुछ करना चाहिये " हम उस परिवेश में चले जाते है, जहाँ हम अपना आकलन करना शुरू कर देते हैं कि अब ”हम यह करने के लायक हो गये हैं“ और इसके बाद हमें यह भी दिखना शुरू हो जाता है कि हमारी प्रगति के लिए वह क्या प्रभावी योगदान हैं जो हम इन टीमों में कर सकते हैं। इन वास्तविकताओं का मतलब यह भी है कि एक वैयक्तिक व्यवसायिक योजना के तहत हम अपनी जिम्मेवारी, अपनी ही जागरूकतापूर्वक देखभाल, समय के साथ समायोजन और समय-समय पर अपना मूल्यांकन कर इनमें बदलाव की भूमिका निभायें। कोई भी कंपनी आपके कैरियर की योजना नहीं बनाती, आपको अपने लिए जो जरूरी है वो खुद ही योजनाबद्ध कर क्रियान्वित करना होगा।
यही वह जगह है जहां असली चुनौती है, क्योंकि हमें अपना जीवन योजनाबद्ध करने, अपनी व्यावसायिक योजना बनाते समय यह साफ होना चाहिए कि हम कौन है - हमें अपने बारे में समझपूर्ण होना होगा। हम सब चाहते हैं कि हम खुश रहें, स्वस्थ रहें, हम प्यार करें, लेकिन हमारा मन बहुत ही अशांत रहता हैं और इन सब के बीच हमारा शरीर इतना क्लांत रहता है कि हम अपने अस्तित्व के उस भाग पर ध्यान देने में सफल ही नहीं हो पाते जो कि हमारे जीवन की सारी बातों की नींव है और हमें हमारे उद्देश्यों के निर्धारण और जीवन को दिशा देने में सहायक होता है, वह है - हमारी आत्मा।
अपने आपको जानने समझना का पहला चरण है कि ”हम कौन है?“ इसके तीन आयामों को समझें। यह हैं - पहला आपका शरीर, दूसरा मन, तीसरा आत्मा।
- आपका शरीर अणुओं का संग्रह है जो आपको संसार का अनुभव कराने में सक्षम है। आपके शरीर में वो संवेदनशील अंग शामिल हैं जो आपको वातावरण से सम्बन्धित करते हैं (सुनना, महसूस करना, देखना, चखना और सूंघना आदि) और संचालन तंत्र (आपका बोलना, हाथ और पैर इत्यादि) आपको कार्य करने में सक्षम बनाता हैं। हर दिन आपके संवेदन अनुभव आपके तंत्रिका तंत्र में कई प्रकार के रासायनिक एवं वैद्युतीय परिवर्तन करते हैं जो आपके शरीर के हर अणु और प्रत्येक अवयव के गुण और संरचना को बदलते हैं। इस प्रकार आपके अनुभव आपको जैविक रूप से प्रभावित करते हैं।
- आपका मन विचारों का क्षेत्र है जो सदा इस वार्तालाप में संलग्न रहता है कि क्या हुआ, क्या हो रहा है और आपके साथ आगे क्या होगा? आपके सतत प्रत्येक अनुभव से ही भावनात्मक प्रतिक्रियाओं से रंगे आपके मत, विचार, मान्यताएं, मूल्यांकन और निर्णय आकार लेते हैं। आपके विचार, स्मृतियां, इच्छायें और अहसास मन की ही विभिन्न अभिव्यक्तियाँ हैं।
- आपकी आत्मा, आपके शरीर और मन की तटस्थ प्रत्यक्षदृष्टा है। आप यह देखें कि 10 वर्ष पूर्व आपका रूप रंग आकार कैसा था और अब कितना बदल चुका है। इस प्रकार आपका शरीर बदलता रहता है। अपने और संसारे के बारे में आपके विश्वास भी पहले के समय से ही नहीं रहते। पर इन सबको आपकी आत्मा सतत देखती रहती है, आपकी पहचान को निरंतरता देते हुए, एक धुरी देते हुए ताकि आप संतुलित रह सकें।
जब आप आत्मा का अवलोकन करते हैं, विचारों से मन बनता है और भौतिक शरीर तद्नुरूप समायोजित होता है, आप अपने इरादों को पसंद में जाहिर करते हैं जिनसे परिणामस्वरूप आपकी इच्छाएं बनती हैं। यह आपकी आत्मा का ही निर्णय होता है जो परिवर्तन के द्वार में आपको इस प्रकार प्रशस्त करता है, आप इससे गुजरते हुए समय में दुबारा वापस लौटने का इरादा नहीं रखते। यही संकल्प या प्रतिबद्धता कहलाता है, जिसमें अपनी जिम्मेदारी हम खुद लेते हैं।
अपने जिन्दगी और कैरियर की जिम्मेदारी लेते समय भी आपको इसी प्रकार की प्रतिबद्धता और संकल्प की आवश्यकता होती है। प्रतिबद्धता में आपका कर्म क्रियान्वित होता है जिसे एक निरंतरता में करना होता है। इन्हीं नियमित कर्मों से आपकी अच्छी और बुरी आदतें बनती हैं जिनके द्वारा आप आपने जीवन को एक (ऑटोमेटिक मोड) ‘‘अपने आप चलने वाले निकाय’’ में डाल देते हैं।
यहाँ आपको तीन मार्गदर्शक सिद्धांत अपनाने होंगे:
1. आप जो सोचते हैं, वही हो जाते हैं।
अपनी आत्मा की गहराई में आपको संदेह रहता है कि आपने अभी भी अपनी पूर्ण सामथ्र्य को नहीं पहचाना है। आप अभी भी और अधिक के योग्य हैं। आपको अपने प्रति ईमानदार रहते हुए अपने मन को इस संदेह के विश्लेषण में लगाना होगा क्योंकि यह चेतन मन ही जो आपको प्रशस्त करता है और सामथ्र्यवान बनाता है कि आप अब एक बेहतर अध्याय रच सकें, उस सब से अप्रभावित रहते हुए जो कि आज की तारीख तक हुआ। अब आपकी प्राथमिक आवश्यकता यह होती है कि आप की जाने वाली चीजों को एक अलग नजरिये से देखें ताकि आप नये नतीजों को पहचान कर उन्हें प्राप्त कर सकें।
2. अपने अतीत से मुक्त हो जायें!
हम सभी के पास मुश्किलें और समस्याएं होती हैं। हम समस्याओं से निपटने की कोशिश में, उनकी जड़ तक जाने के लिए सालों का समय और अमूल्य ऊर्जा लगाते हैं। इस प्रकार समस्या को हल करने के लिए भी, समस्या को प्रमुखता देना अत्यंत सफल रणनीति नहीं है। यह स्पष्ट रूप से समझना संभव है कि हम क्यों नाखुश हैं, लेकिन इसके बाद भी हम खुश क्यों नहीं होते? यह संभव है कि आप जान जायें कि आपने अतीत में गलत चुनाव और निर्णय किये, लेकिन ये ज्ञान आपको वर्तमान को बेहतर बनाने में सक्षम नहीं बनाता। सर्वाधिक महत्वपूर्ण सिद्धांत यह है कि हम अतीत को देखें, जाने दें और बदलने के लिए प्रतिबद्ध हों। हमें अपनी जिन्दगी बदलने के लिए, खुद को बदलना होगा।
3. असीखा होना या बने बनाये सांचों और ढाँचों से निकलना।
आपको यांत्रिक जीवन से बाहर निकलना होगा। हम में से बहुत से लोग अपनी जिन्दगी उस सीखे-सिखाये जानवर जैसे जीते हैं जिसे यह पता होता है कि किन परिस्थितियों, हालातों या लोगों से मिलने पर, किस तरह की प्रतिक्रिया देनी है। क्योंकि उन्हीं चीजों और बातों को दोहराने में सुरक्षितता होती है, लोग उन रिश्तों में भी बने रहते हैं जो उनके लिए भले नहीं होते, उन कामधंधों में भी लगे रहते हैं जिनमें उनकी आत्माभिव्यक्ति की कम ही गुंजाइश होती है और उस दिनचर्या को भी निरन्तर बनाये रखने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं जिनसे वो अपने आस-पास ही हमेशा मंडरा रहे अवसरों के प्रति सुन्न और असंवेदनशील हैं। आप यह सुनना पसंद करें या ना करें पर यह सच है कि आप आदतों के गुलाम हो गये हैं या रोबोट से हो गये हैं। आप वो खेत हैं जिनको बागड़ ही निगल गयी है। यदि आप को जीवन में वो चाहिए जो आपको नहीं मिल रहा है तो आपको इन आदतों को पहचानना, इनसे मुक्त होना और इनको पार करना होगा। क्योंकि आप आदतों को बनाने वाले हैं, ना कि आदतों के द्वारा बने हैं। आपको जानना ही होगा कि आप वास्तव में क्या हैं?
यह आपका कर्म है जो जिन्दगी में वहां ले जाता है जहां आप जाना चाहते हैं न कि आपकी या किसी अन्य की पुष्टि। सफल लोग कभी भी अपने आपको निरन्तर यह नहीं कहते रहते कि ‘‘मैं एक शक्तिशाली व्यक्ति हूँ’’ बल्कि वो यह अपने कर्मों से सिद्ध करते रहते हैं कि वो उससे अधिक के योग्य हैं, जो वो अभी हैं।
चुनौती अभी और यहीं है। आपके पास चुनने के लिए अन्य कोई मार्ग नहीं है सिवा इसके कि आप अपने जिन्दगी और कैरियर की बागडोर अपने हाथ में ले लें क्योंकि अन्य कोई व्यक्ति आपके लिए ऐसा नहीं करने वाला है। अन्य लोग भी आपकी ही भांति भ्रमित हैं। यह निर्धारित करें कि कौन सा ज्ञान है जो आपको प्राप्त करना है, यह जाने कि कैसे और कहाँ से ये ज्ञान मिलेगा, वहां जायें और इसे प्राप्त करें और प्रयोग में लायें। अपने आपको अपनी विशेषज्ञता के क्षेत्र में सर्वोत्तम उत्पाद बनायें।
इन बातों के लिए प्रतिबद्ध हों:
1. आपको कौन सा, किस चीज का ज्ञान चाहिए
2. इस नये ज्ञान को पाने के मार्ग निर्धारित करें।
3. इस नये ज्ञान को व्यावहारिकता में उतारते समय अपने प्रति ईमानदार रहें। याद रखें आपके अन्दर से आये गलत फैसले, आपको असफल बनाने में बाहरी तथ्यों से 6 गुना ज्यादा बड़ा कारण बनते हैं।
व्यवसाय में सफलता, जीवन में सफलता प्राप्त करने की तरह ही है और दोनों में बुनियादी बातें समान हैं कि अपने कब, कहाँ, क्या किया? क्या यह विचारणीय नहीं है?
2 टिप्पणियां:
बहुत अच्छा और ज्ञानवर्धक लेख....
बधाई...
बहुत अच्छा एवं जीवनोपयोगी लेख!
किन्तु इसमें एक कमी नजर आयी। इसमें प्रयुक्त हिन्दी के शब्द कोई 'कठिन' नहीं हैं फिर भी वाक्य-रचना में अंग्रेजी-शैली के अनुकरण के कारण क्लिष्टता आ गयी है। कहीँ-कहीं समझने में कठिनाई हो रही है।
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