सबसे ज्यादा दु:ख निरन्तर मानवता में हो रहे ह्रास को वहाँ देखकर होता है... जहाँ लोग उन नौकरियों से जकड़े बैठे हैं जो उन्हें पसंद नहीं हैं लेकिन क्योंकि उनमें भय है कि कहीं इनसे भी घटिया नौकरी ना करनी पड़े. लोग दिमाग से खाली हो गये हैं. वो कांपते हुए जिस्म भर हैं जिनमें डरा हुआ और आज्ञाकारी मन है. उनकी आंखों से रंगत चली गई है. उनकी आवाज भरभराई हुई है और भद्दी है.. यही हाल उनके शरीर, उनके बालों, उनके हाथों के नाखूनों, उनके जूतों और यही हाल उनके सारे किये गये कामों का भी है.
तो मेरी किस्मत थी कि अंतत: मैं इन जगहों से बाहर निकल गया, इस सब में कितना समय लगा... ये बात बेमायनी है.. यह सब जान मुझे एक तरह का आनंद महसूस होता है, किसी चमत्कार को देखने जैसा आनंद. अब मैं एक पुराने मन और पुरानी देह से लिख रहा हूं.. उस पुराने समय के बहुत परे से..जबकि आज भी कई आदमी उसी पुराने ढर्रे.. उन्हीं सब चीजों पर ही निरन्तर चलने की सोचते हैं.. जब जबकि मैंने बहुत देरी से शुरू किया.. मेरी खुद की इच्छा है कि अब में इसी राह पर चलूं..अब जबकि शब्द लड़खड़ाने लगे हैं.. मुझे सीढ़ियां चढ़ने के लिए रेलिंग की मदद लेनी पड़ती है.. अब मैं एक पेपरक्लिप की मदद से चिढ़िया नहीं बना पाता, मैं अभी भी महसूस करता हूं कि मुझमें कुछ यादें अभी भी बाकी हैं.. ये मुद्दा नहीं कि में अब मैं उस सबसे कितनी दूर आ गया हूं... मैं अपनी हत्या होने से बच पाया हूं.. कई उलटफेर गड़बड़ियों और कड़ी मेहनतों से गुजरा हूं और उस रास्ते पर आ पाया हूं कि एक भली मौत गले लगा सकूं.
जिंदगी को यूं ही व्यर्थ गुजारना भी मूल्यवान है, यदि यह सब स्वयं मेरे लिए ही हो.. मैं अपने लिए ही करूं...
Author Charles Bukowski in a letter to a friend about finally “breaking free” of his job and being able to write :
And what hurts is the steadily diminishing humanity of those fighting to hold jobs they don’t want but fear the alternative worse. People simply empty out. They are bodies with fearful and obedient minds. The color leaves the eye. The voice becomes ugly. And the body. The hair. The fingernails. The shoes. Everything does.
So, the luck I finally had in getting out of those places, no matter how long it took, has given me a kind of joy, the jolly joy of the miracle. I now write from an old mind and an old body, long beyond the time when most men would ever think of continuing such a thing, but since I started so late I owe it to myself to continue, and when the words begin to falter and I must be helped up stairways and I can no longer tell a bluebird from a paperclip, I still feel that something in me is going to remember (no matter how far I’m gone) how I’ve come through the murder and the mess and the moil, to at least a generous way to die.
To not to have entirely wasted one’s life seems to be a worthy accomplishment, if only for myself.
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