बुधवार, 2 अक्टूबर 2013

हल नहीं ढूंढा करते



खाक में गुजरा हुआ कल, नहीं ढूंढा करते
वो जो पलकों से गिरा पल नहीं ढूंढा करते

पहले कुछ रंग लबों को भी दिये जाते हैं
यूं ही आंखों में तो काजल नहीं ढूंढा करते

बेखुदी चाल में शामिल भी तू कर ले पहले
यूं थके पैरों में पायल नहीं ढंूढा करते

जिस ने करना हो सवाल आप चला आता है
लोग जा जा के तो साहिल नहीं ढूंढा करते

ये हैं खामोश अगर इस को गनीमत जानो
यूं ही जज्बात में हलचल नहीं ढूंढा करते

पीछे खाई है तो आगे है समन्दर गहरा
मसला ऐसा हो तो फिर हल नहीं ढूंढा करते

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