Monday 21 November 2011

परिंदे की मौत

जिन्दगी एक खुजली का नाम है। जब आत्मा को खुजली होती है तो वो किसी गर्भ में उतरती है और जिन्दगी की नौटंकी शुरू होती है। करोड़ों योनियां (जून या जन्म) हैं, करोड़ों भूमिकाएं। मुझे याद नहीं कि, यह तय करना अपने हाथ में या नहीं कि आप कौन सी भूमिका चुनेंगे। दुनियां में कुछ लोग तो ऐसे दिखे जो भूमिका उन्हें मिली वो भी नहीं निभाते, हद ये कि.... कुछ अपनी भूमिका और चरित्र से दुखी होकर आत्महत्या कर लेते हैं। कुछ जो भूमिका मिली है उससे इतर भी फटे में टांगें डालते रहते हैं, ऐसे लोगों की हाथों में 11 अंगुलियां होती हैं। एक अतिरिक्त उंगली अतिरिक्त जगहों पर डालने के लिए, जो शरीर पर नजर नहीं आती पर उनके चरित्र का अभिन्न अंग होती है। खैर मैं शायद भटक रहा हूं, मुझे आपको कुछ पलों का छोटा सा किस्सा सुनाना है, कहानी नहीं। कहानी की परिभाषा ये है कि - वो किस्सा जो लम्बा लगने लगे उसे कहानी कहते हैं। कब कैसा लगता है इसे मापने के लिए आपका जिन्दा होना जरूरी है। यह किस्सा जिन्दा रहने का ही है।
 
एक समय रामाधार नाम का एक आदमी बेचैन था, या बेचैन होने का दिखावा करता था। क्योंकि उसके पास आधारभूत रूप से... बेसिकली वो सब था जो किसी दुनियांदार के पास होता है। मां बाप बीवी बच्चे, इन सबके लिए पैसा और कभी कभी फैशन में आ रही चीजों... जैसे पिज्जा बर्गर का स्वाद लेने का हौसला। रामाधार को खुजली हुई कि उसकी छोटी बिटिया 4 की एक छोटा सा पंछी पालने की मांग जायज है। उसकी छोटी बिटिया को पड़ोस का पंचू चिढ़ाता था क्योंकि उन्होंने एक तोता पाल रखा था, इसलिए वो रामाधार को पंछी लाने को कहती, और बड़ी बिटिया मीतू 10 उसकी मांग का समर्थन करती।
दरअसल यह बात बड़ी उलझी है कि आदमी में होने वाली कौन सी खुजली, किस खुजली से जुड़ी है। रामाधार ने बचपन में एक कुत्ता पाला था, और कबूतर पाले थे। कुत्ते को उसके पिताजी ने घर से निकलवा दिया था। रामाधार खुद उसे एक सुनसान में, भरी सर्दी के दिनों में एक पुलिया के नीचे छोड़ आया था। उसके पाले कबूतरों को उसकी अनुपस्थिति में एक बड़ा सा बिल्ला खा गया था।
शायद इस वजह से उसने अब 40 बरस की उम्र में दो परिंदे खरीद लिये। बड़े दिनों की टालमटोल के बाद एक दिन बाजार जाकर एक नीली और एक हरी चिडि़या जिसे अंग्रेजी में लवबर्डस कहते हैं का जोड़ा खरीद लिया। उसका खयाल था कि कुछ दिन बाद जब छोटी बिटिया गुन्नी का दिल बहल जायेगा तो चिडि़यों को पार्क में ले जाकर उड़ा देंगे। इससे परिंदे पालने की खुजली दूर हो जायेगी, परिंदे सैयाद से छुड़ाकर उड़ा देने पुण्य भी मिलेगा। जब चिडि़यों का जोड़ा घर लाये तो गुन्नी बहुत खुश हुई, बड़ी मीतू को भी मजा आया। बीवी को लगा कि बहुत पैसे खर्च कर दिये इतने में तो एक अच्छा पर्स आ जाता। खैर दिन निकलना शुरू हो गये।
रामाधार ने इंटरनेट पर देखा कि लवबर्डस कैसे पालते हैं, उनकी जरूरते क्या होती हैं। पर सबसे बड़ी जरूरत रामाधार जानता था (उन्हें पिंजरे से उड़ा कर मुक्त हवा में छोड़ देना) जो इंटरनेट पर लवबर्डस को पालने वाली वेबसाइट्स में कहीं नहीं लिखा था।
सप्ताह बाद रामाधार को लगा कि पिंजरा छोटा है, अगर कुछ सप्ताह या महीनें इन्हें घर पर ही रखना है तो पिंजरा बड़ा होना चाहिए ताकि ये एक मीटर लम्बी छोटी सी उड़ान भर सकें। दूसरा पिंजरा खरीदने में इतने ही पैसे और लगने थे जिनमें ये दो परिंदे और पिंजरा आ गया था। दो हफ्तों बाद गुन्नी का लगाव परिंदों से बहुत बढ़ गया था। रामाधार की बीवी को परिंदों के लालनपालन, ध्यान रखने से खीझ थी। बड़ी मीतू के लिए सब ठीकठाक था, वो चाहती थी कि अब बड़ा पिंजरा ले ही लिया जाये।
तीसरे सप्ताह में पिंजरे लाने का विचार अमल में आना शुरू हुआ। रामाधार ने जाकर पिंजरे वाले से बात की तो उसने जो दाम बताये वो ज्यादा लगने लगे। रामाधार ने सोचा वो खुद ही पिंजरा बना लेगा। इन सबकी जुगाड़ में आज और कल के दिन निकल रहे थे।
एक दिन रामाधार दोपहर के भोजन के समय दफ्तर से घर आया तो उसकी बीवी ने बताया कि हरे रंग वाला परिंदा उड़ गया है। रामाधार को भला ही लगा कि चलो अच्छा हुआ। फिर उसे लगा कि अब नीला पंछी अकेला ही रह गया है, ये उदास हो जायेगा। उसने घर में मौजूद बीवी और बड़ी मीतू को बुलाया कि चलो इस नीले पंछी को भी उड़ा देने का मजा लें। उसने पिंजरे का दरवाजा खोला, और अन्य सब तरफ से पंछी को दरवाजे की ओर जाने को प्रेरित किया। पर पंछी नहीं उड़ा वो दरवाजे से बाहर गर्दन निकालता और वापस पिंजरे की जाली से चिपट जाता, पिंजरे में ही घूमने लगता।
काफी देर बाद जब पाया कि वो अपने आप नहीं निकलेगा तो रामाधार ने सोचा कि जैसी कि उसने कल्पना की है, उसे पकड़कर फिल्मी स्टाईल में हवा में छोड़ दे। उसने पंछी को पकड़ा, पंछी ने छोटी सी चोंच से उसे काटा... उसे मजा आया। बीवी और मीतू के सामने उसने पंछी को हवा में लहराया। पंछी ने पर मारे पर वो 45 डिग्री का कोण बनाते हुए तीसरे माले के फ्लैट से नीचे बिछी कांक्रीट रोड़ पर धड़ के बल जा गिरा। उसके गिरते ही अचानक कहीं से एक कुत्ता आया और उसे मुंह में दबाकर चलता बना। तीसरे माले के फ्लैट की बालकनी में खड़े रामाधार को अब महसूस हुआ कि वो तीसरे माले के फ्लैट से फिल्मी स्टाइल में छलांग नहीं लगा सकते। वो चप्पल पहनकर नीचे दौड़े। जब तक नीचे पहुंचते, कुत्ता उस पंछी को दबाकर कुछ दूर ले गया था। रामाधार जब तक कुत्ते के पास पहुंचते रामाधार को लगा... वो उसके प्राण ले चुका था। रामाधार ने एक बड़ा सा पत्थर उठाकर दे मारा... पर वो कुत्ता पंछी को मुंह में दबाकर दूसरी ओर भागा। और एक कार के पीछे जाकर छुपकर उसे खाने लगा। जब तक उस कार के पीछे पहुंचते, रामाधार ने देखा, पंछी की एकडेढ़ सेमी बड़ी गर्दन निपट चुकी है। या शायद रामाधार ये सब देखना ही नहीं चाहते थे। उस परिंदे के रंगीन पंख जिनकी सुंदरता के आधार पर रामाधार ने खरीदने के लिए उसे चुना था...  बिखर गये थे। रामाधार ने सोचा, अगर अब कुत्ते को एक बड़ा सा पत्थर दे मारें तो यह कुत्ते का भोजन छीनना और एक और पाप का भागी बनना होगा। होनी हो चुकी है। इस सब नौटंकी के बाद रामाधार जब घर लौटे तो मीतू रो रही थी। रामाधार बीवी पर बिफरने ही वाले थे कि यदि उसे कमरे में ही उड़ा कर उसकी उड़ान की क्षमता या इच्छा देख लेते तो अच्छा रहता। वैसे पता तो किसी को भी नहीं था कि पंछी के पंखों में उड़ने लायक शक्ति नहीं थी।
रामाधार को हरे वाले पंछी के उड़ जाने की खुशी थी और नीले परिंदे के इस दुखद निधन का अफसोस। रामाधार की उसे उड़ाने की कोशिश में परिंदा मौत के मुंह में गया। सबसे बड़ा दुख ये था कि उसके, बीवी और बेटी मीतू के सामने वो कमीना कुत्ता उस परिंदे को उनके सामने ही दबोच ले गया जिसे 3-4 हफ्ते से पाल रहे थे।

5 comments:

SANDEEP PANWAR said...

ये ही तो जीवन है कब कौन बिछुड जाये नहीं पता?

Sunil Kumar said...

बहुत खुबसूरत बहुत संवेदनशील सारगर्भित कहानी अच्छी लगी

Atul Shrivastava said...

इसी का नाम जिंदगी है....
बढिया तरीके से वर्णन।

सागर said...

bhaut hi acchi....

vijay kumar sappatti said...

बहुत ही सार्थक पोस्ट . जीवन के रंगों को दर्शाती हुई ...

बधाई !!
आभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " कल,आज और कल " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/11/blog-post_30.html

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