गुरुवार, 25 अगस्त 2011

महात्मा गांधी ने संसद और मनमोहन सिंहों के बारे में क्या कहा?

1909 में जब अंग्रेज हम पर राज कर रहे थे, तब भी संसद वगैरह थी और महात्मा गांधीजी ने संसदीय लोकतंत्र के बारे में लिखा था -
" जिसे आप पार्लियामेंटों की माता कहते हैं, वह पार्लियामेंट (संसद) तो बांझ और बेसवा (वैश्या) है... मैंने उसे बांझ कहा क्योंकि अब तक इस संसद ने अपने आप एक भी अच्छा काम नहीं किया... संसद सदस्‍य दिखावटी और स्वार्थी हैं। यहां सब अपना मतलब साधने की सोचते हैं। सिर्फ डर के कारण ही संसद  कुछ करती है। आज तक एक भी चीज को संसद ने ठिकाने लगाया हो, ऐसी कोई मिसाल देखने में नहीं आती... बड़े सवालों की चर्चा जब संसद में चलती है, तब उसके मेंबर पैर फैला कर लेटते हैं या बैठे बैठे झपकियां लेते रहते हैं.. या फिर इतने जोरों से चिल्लाते हैं कि सुनने वाले हैरान परेशान हो जाते हैं... जितना समय और पैसा संसद खर्च करती है उतना समय और पैसा अगर अच्छे लोगों को मिले तो प्रजा का उद्धार हो जाये । संसद को मैंने वैश्या कहा क्योंकि उसका कोई मालिक नहीं है, उसका कोई एक मालिक नहीं हो सकता। लेकिन बात इतनी नहीं है। जब कोई उसका मालिक बनता है, जैसे प्रधानमंत्री, तब भी उसकी चाल एक सरीखी नहीं रहती। जैसे बुरे हाल वैश्या के होते हैं, वैसे ही हमेशा संसद के होते हैं.. अपने दल को बलवान बनाने के लिए प्रधानमंत्री संसद में कैसे-कैसे काम करवाता है, इसकी मिसालें जतिनी चाहिए उतनी मिल सकती हैं... मुझे प्रधानमंत्रियों से द्वेष नहीं है लेकिन तजुर्बे यानि अनुभव से मैंने देखा है कि वे सच्चे देशाभिमानी नहीं कहे जा सकते... मैं हिम्मत के साथ कह सकता हूं कि उनमें शुद्ध भावना और सच्ची ईमानदारी नहीं होती.. "

क्या यही सब, आज, भारत की संसद और प्रधानमंत्री की भी कहानी नहीं है?

2 टिप्‍पणियां:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

एकदम सटीक , ज़रा भी फर्क नहीं है !

Saru Singhal ने कहा…

Nicely written post:)

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