कोई बात
कभी भी
इतनी सीधी-साधी नहीं होती
कि
सहमत या
असहमत होकर
ठहर जाया जाये।
और तुम्हें
इससे ज्यादा
फुर्सत नहीं है
मेरे लिये।
--------------------
--------------------सारा जिस्म
स्खलित हो जाने के बाद भी
बहुत कुछ बचता है
अनुभव करने जैसा।
अगर तुम
मेरी मौत में शामिल होना चाहो।
चारों तरफ विकिरण फैला है
तुम चाहे सांस लो या ना लो।
मौत सरक ही रही है।
और कुछ है भी नहीं धरती के अलावा।
और तुम कहते हो
कहीं दूर जाकर मरोगे।
10 टिप्पणियां:
nishthurata kee ati rahee.......
सारा जिस्म
स्खलित हो जाने के बाद भी
बहुत कुछ बचता है
अनुभव करने जैसा।
अगर तुम
मेरी मौत में शामिल होना चाहो।
Bohut Khoob!
ह्म्म्मम्म...गहराई लिए पंक्तियाँ हैं आपकी रचना में...
नीरज
बेजोड़! अच्छी लगी आपकी पंक्तियाँ....
sunder rachna
सोचने पर मजबूर करती रचनाएँ ..अच्छी लगीं
kuch alag se khaas se khyaal
गहन भावों का समावेश इस प्रस्तुति में ।
बेहतरीन अभिव्यक्ति .....सार्थक भाव
बहुत उम्दा.
सलाम.
एक टिप्पणी भेजें