Wednesday 2 March 2011

हमें पता है- आपकी इच्‍छा क्‍या है?


इच्छा
उस फिल्मी नायिका का
स्वर्गिक सौन्दर्य होती है
जिसे हमने अपनी जिन्दगी में
किसी अंधेरे एयरकंडीशंड सिनेमाघर में
पहली बार फिल्म देखते वक्त देखा हो


इच्छा
सुर्ख होंठों, सुराहीदार गले
काली, तर्रार आंखों वाली
वह नवयौवना होती है
जो इतनी ढंकी छुपी होती है
कि हमें बाकी सब कल्पना करनी पड़े
और
बस कुछ दिन बाद ही पता चले
कि उस कैंसरग्रस्त नवयौवना के
कुछ ही दिन शेष हैं।


इच्छा
उस नवयुवा कवि की
दर्द, प्रेम और अद्भुत जीवंत अर्थों वाली
वो दो चार पंक्तियां होती हैं
जिसे
हर जवान होता शख्स
कभी ना कभी गुनगुनाता है
और बाद में पता चलता है
यही युवा कवि
अपनी गुनगुनाहट में असफल होकर
प्रेमिका के चेहरे पर तेजाब फेंक देता है


इच्छा
पहली नजर में
इतनी मादक होती है
कि इस दौरान ही
हर कोई मौत चाहने लगता है
लेकिन
इस खुमार के तुरन्त बाद
हर रोज, हर पल
ना चाहकर भी मरता है


इच्छा
दीवाली की कल्पना सी होती है
धन-दौलत-रौशनी और पटाखे
सारे साल में,
बस एक रात,
बस एक पहर।


इच्छा उस चांदनी रात सी है
जिसके बाद हर रात
चांद खत्म होते-होते
काली अमावस में बदल जाता है
पता नहीं किस मृत इच्छा में।
इच्छा को
आदमी भोगना चाहता है
पर इच्छा
आदमी को भोग लेती है


इच्छा की उम्र तो देखो
कि
अभी जेहन में आये और
बिना चेहरा दिखाये ही
बदल लेती है चेहरा।


इच्छा
दुनियांदारों की
सदियों बाद आबादी है
और तुरन्त बर्बादी है।


इच्छा
गुफाओं में बैठे हुए
तपस्वियों की उम्र है।


इच्छा
ताना-बाना है
‘नया’, ‘कुछ और’, ‘चरम’
‘सर्वश्रेष्ठ’, ‘अमरत्व’ ‘अनूठा’
आदि शब्दों का।

11 comments:

सदा said...

बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

Rajeysha said...

धन्‍यवाद सदा जी।

Sandip Sital Chauhan said...

इच्छा उस चांदनी रात सी है
जिसके बाद हर रात
चांद खत्म होते-होते
काली अमावस में बदल जाता है
पता नहीं किस मृत इच्छा में।

बहुत खूब !

रश्मि प्रभा... said...

इच्छा
सुर्ख होंठों, सुराहीदार गले
काली, तर्रार आंखों वाली
वह नवयौवना होती है
जो इतनी ढंकी छुपी होती है
कि हमें बाकी सब कल्पना करनी पड़े
और
बस कुछ दिन बाद ही पता चले
कि उस कैंसरग्रस्त नवयौवना के
कुछ ही दिन शेष हैं।
shaandaar vivechna

डॉ टी एस दराल said...

इच्छा को
आदमी भोगना चाहता है
पर इच्छा
आदमी को भोग लेती है

लाज़वाब बात कही है ।
अच्छी प्रस्तुति ।

विशाल said...

बहुत खूबसूरत नज़्म.सुन्दर कटाक्ष.
फलसफा भी बहुत खूब.

इच्छा को
आदमी भोगना चाहता है
पर इच्छा
आदमी को भोग लेती है

सलाम.

OM KASHYAP said...

gajab ki parastuti
hakikat bya karti
aabhar...

Kulwant Happy said...

nice...

pragya said...

अच्छी रचना..

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत खूब !

amrendra "amar" said...

इच्छा की उम्र तो देखो
कि
अभी जेहन में आये और
बिना चेहरा दिखाये ही
बदल लेती है चेहरा।

kitni sunderta se ukera hai aapne iccha ko nahi to wo kab aayi aur kab chali gayi hum juaan bhi nahi pate ..sunder rachna ke liye aabhar

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