Wednesday 30 March 2011

तुम्‍हें फुर्सत नहीं है....


कोई बात
कभी भी
इतनी सीधी-साधी नहीं होती
कि
सहमत या
असहमत होकर
ठहर जाया जाये।
और तुम्हें
इससे ज्यादा
फुर्सत नहीं है
मेरे लिये।

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सारा जिस्म
स्खलित हो जाने के बाद भी
बहुत कुछ बचता है
अनुभव करने जैसा।
अगर तुम
मेरी मौत में शामिल होना चाहो।
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चारों तरफ विकिरण फैला है
तुम चाहे सांस लो या ना लो।
मौत सरक ही रही है।
और कुछ है भी नहीं धरती के अलावा।
और तुम कहते हो
कहीं दूर जाकर मरोगे।

10 comments:

Apanatva said...

nishthurata kee ati rahee.......

Sandip Sital Chauhan said...

सारा जिस्म
स्खलित हो जाने के बाद भी
बहुत कुछ बचता है
अनुभव करने जैसा।
अगर तुम
मेरी मौत में शामिल होना चाहो।

Bohut Khoob!

नीरज गोस्वामी said...

ह्म्म्मम्म...गहराई लिए पंक्तियाँ हैं आपकी रचना में...
नीरज

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

बेजोड़! अच्छी लगी आपकी पंक्तियाँ....

amrendra "amar" said...

sunder rachna

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सोचने पर मजबूर करती रचनाएँ ..अच्छी लगीं

रश्मि प्रभा... said...

kuch alag se khaas se khyaal

सदा said...

गहन भावों का समावेश इस प्रस्‍तुति में ।

केवल राम said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति .....सार्थक भाव

विशाल said...

बहुत उम्दा.
सलाम.

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