शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

या देवी सर्वभूतेषु दृष्‍टि‍ रूपेण संस्‍थि‍ता


 













इससे पहले कि तुम
मेरे आगे दोस्ती का दाना डालो
फिर प्रेम के रोने रोओ
और फिर
शादी के कागजों पर अंगूठा लगवाओ
तुम्हें जानना चाहिये

मैं तुम्हारी
सुबह की ताजा और गर्मा-गर्म
बेड-टी नहीं हूं
इसी तरह
वक्त पर
दोपहर, और रात का भोजन भी नहीं।

मैं वो कम्प्यूटराईज्ड मशीन नहीं हूं
जिसमें तुमने अपनी पसंद के
सारे शेड्यूल फीड कर रखे हैं
और वो मशीन
तुम्हें कपड़े, जूते, मोजे तुरन्त देगी
टूटे बटन टांक देगी
तुम्हारी मर्दानगी के सुबूत
बच्चे पैदा करेगी
पालेगी उन्हें तुम्हारे हिसाब से

मैं तुम्हारी वो जागीर नहीं हूं
जिसके रूप और समझदारी पर इतराते फिरो
कार में बगल वाली सीट पर सजाते फिरो।
जिसे तुम दोस्तों को दिखाते फिरो

मैं तुम्हारी शाम का रोमांस नहीं हूं।
मैं तुम्हारी रात का बिस्तर नहीं हूं।

मैं तुम्हारे वासनाओं की खूंटी नहीं हूं
कि कभी जींस, कभी स्कर्ट, कभी साड़ी
मुझ पर हर तरह के कपड़े टंगे रहें
जो तुमने फिल्मी हिरोइनों पर देखे हों, पसंद हों।

मैं जिम की वो मशीन नहीं
जिस पर
तुम वात्सयायन की नीली सीडियों में
रक्तचाप और बेहोशी बढ़ाती
उत्तेजक मुद्राएं आजमाओ।

तुम जिसके सपने देखते हो
मैं वो महिला आरक्षण भी नहीं
कि मैं सारे कामों के साथ
नौकरी भी करूं
इंतजाम करूं
तुम्हारे मोबाईल, टीवी, इंटनेट, कार के लिए पेट्रोल का
बच्चों के साथ सैर सपाटों का
मैं वो आधुनिक महिला नहीं
जो तुम्हारा अहसान माने
कि तुमने बिना कुछ किये
उसे आधुनिक होने दिया
और घर के साथ ही किसी दफ्तर और
दुनियां भर की जिम्मेदारियां, मगजमारियां दे दी।

मैंने पढ़ा सुना है
लक्ष्मी, शिवानी, ब्रम्हाणी के बारे में
गार्गी, मैत्रैयी, झांसी की रानी के बारे में
अगर तुमने भी सुना हो....
अगर किसी पूर्णता की तलाश में हो तुम भी
तो दो और
जीती जागती आंखों की सामर्थ्‍य की तरह
मुझे भी साथ ले चलो।

10 टिप्‍पणियां:

Neeraj Kumar ने कहा…

बहुत ही बढ़िया कविता...
आज की नारी और उसके भीतर जलती हुई आग एक एक पंक्तियों में भभकती दिख रही है...

वाह वाह वाह

रश्मि प्रभा... ने कहा…

मैंने पढ़ा सुना है
लक्ष्मी, शिवानी, ब्रम्हाणी के बारे में
गार्गी, मैत्रैयी, झांसी की रानी के बारे में
अगर तुमने भी सुना हो....
अगर किसी पूर्णता की तलाश में हो तुम भी
तो दो और
जीती जागती आंखों की सामर्थ्‍य की तरह
मुझे भी साथ ले चलो।

aapki ek ek panktiyon ne mujhe stabdh ker diya aur meri aankhen , mera dil mera dimaag aapki kalam apki soch ki vandna ker raha hai...

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

बहुत सुंदर, मैं इस दृष्टिकोण का कायल हूँ।

Alokita Gupta ने कहा…

nice

शारदा अरोरा ने कहा…

बढ़िया लिखा है ,ये सारे झगड़े तब तक रहेंगे जब तक रूह को शरीर समझा जाएगा ...

बेनामी ने कहा…

first time reading your blog and really enjoy it.

pragya ने कहा…

बहुत बढ़िया कविता....काश कि इस भावना को हर कोई समझ जाए....

Sandip Sital Chauhan ने कहा…

bahut khoob!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत ही बढ़िया ... Nihshsbd kar diya apne ..

रंजना ने कहा…

बहुत ही आक्रामक ....

लेकिन संभवतः नारी स्वभाव का एक पक्ष ही है यह...दूसरा पक्ष इस का विपरीत ही होगा...और दोनों पक्ष संतुलित मात्रा में हो तभी व्यक्तित्व पूर्ण होगा....

एक टिप्पणी भेजें