एक अंधा सा कुआं, हर रौशनी से डर
क्यों डराता है, किसी सोचे से, जुदा मिलना
रात भर को सब्र की, रोशन शमा रखिये
जो चाहते हो, नूर की परचम, सुबह मिलना
अपने खयालों-फैसलों की, यही आदत सताती है
तय था कल, अब फिर कोई, शक-ओ-शुबा मिलना
तेरी ही कोशिश पर, नजर उसकी, जो करता तय
कुछ और कर, ये जानकर कि, तयशुदा मिलना
जो जायेगी ही एक दिन, दौलत वो छोड़िये
जन्नते दिखलायेगा, गरीबों की दुआ मिलना
किताबी कीड़ों को, रद्दी के सिवा क्या मिलना
किस्मत में अनपढ़ फकीरों की खुदा मिलना
क्यों डराता है, किसी सोचे से, जुदा मिलना
रात भर को सब्र की, रोशन शमा रखिये
जो चाहते हो, नूर की परचम, सुबह मिलना
अपने खयालों-फैसलों की, यही आदत सताती है
तय था कल, अब फिर कोई, शक-ओ-शुबा मिलना
तेरी ही कोशिश पर, नजर उसकी, जो करता तय
कुछ और कर, ये जानकर कि, तयशुदा मिलना
जो जायेगी ही एक दिन, दौलत वो छोड़िये
जन्नते दिखलायेगा, गरीबों की दुआ मिलना
किताबी कीड़ों को, रद्दी के सिवा क्या मिलना
किस्मत में अनपढ़ फकीरों की खुदा मिलना