Wednesday 22 September 2010

जी करता है मिल जाए......


हो गया है निकट दृष्टि दोष
दूर का सब दिखता है स्पष्ट और आकर्षक
पास का सब हो गया है धुंधला विकर्षक
दूर का सब स्पष्ट, चित्ताकर्षक
और हष्ट पुष्ट दिखता है

जी करता है मिल जाए
हर दूर स्थित कल्पना का,
बस एक अनुभव एहसास।
दूर में ही दिखता है,
पाने योग्य समग्र खास।

दूर का हर चेहरा, बहुत सुन्दर है।
दूर की हर काया,
उत्तेजना का लहराता समन्दर है।
दूर का हर रिश्ता बड़ा गहरा है,
दूर का सर्वस्व सपनों में ठहरा है।


पास जो है सब बीत चुका है जैसे
जंग लगा, सब चूक चुका है जैसे
नजर कुछ नहीं आता
बस महसूस होता है बासापन,
जो किसी भी भूख को खा जाता है
ये बासापन
लगता है जैसे सारा भविष्य खा जायेगा।


फफूंद लगे नजारे
बासी कड़ी’याँ
जिन्दगी के सारे उबाल
ठंडे कर देती हैं।

करने को अभी कितना कुछ बाकी है -
फिल्मी हीरोइनें
फिल्मी माई बाप
फिल्मी बच्चे
फिल्मी कारें
फिल्मी रहन-सहन
फिल्मी बाजार
फिल्मी चालाकियाँ, चोरी-डकैती
फिल्मी कत्ल
फिल्मी सजाएं
फिल्मी मौत।

मन के सुरमई अंधकार भरे कोने में
सुविधाओं के गुनगुने ताप पर
लगता है गाँव में -
दादी की गोद की मक्खनी गंध,
मां के चेहरे से टपकता प्यार,
बाप का भविष्य को आकार देता गुस्सा,
मौसी का प्रेरक दुलार,
ताऊ के बच्चों संग कुश्ती,
सब समय नष्ट करना था।

सच और झूठ के छद्म सिद्धांत पढ़े बिना
सच और झूठ की परवाह किये बिना
जो हो रहा है वही सही है जैसे

मां बाप का वृद्धाश्रमों में रहना,
बहू बेटियों का उघड़े बदन बहना।
बच्चों का टीवी चैनलों में गर्क होना।
सब कुछ फलता फूलता नर्क होना।

इंटरनेट पर
हवस की मरीचिका में
हर क्षण लगता है
जैसे कोई अदृश्य रिश्ता
इन ऊब से पके दिनों से
कहीं दूर ले जायेगा

फिर
अचानक अनायास खुल गई
सूनामी, भूकंप, बाढ़ राहत कोश से संबंधित
किसी वेबसाईट को देखकर
मेरा एक खयाल -
कि (मेरे पास हों तो करोड़ों में से...
कुछ लाख तो मैं दूंगा
इन मानवीय कार्यों में।)
बिल गेट्स से ज्यादा।

ये खयाल
मेरे निकट दृष्टिदोष को बेबाक
और दूरदृष्टि को पुष्ट करता
और तैशदार बनाता है।

हालांकि सच और झूठ की
परवाह किये बगैर
एक सांवली बीवी
दो औसत बुद्धि बच्चे
एक अदद बूढ़े मां बाप
हजारों की कमाई से
कुछ सैकड़ा की अपेक्षा किये बिना
इन दुआओं के साथ
कि ”फिल्में देख-देख कर खराब हो चुकी नजर
हकीकत की रोशनी में आ सुलझ जाये
मेरे साथ ही रहते हैं।“

मुझे भी समझना चाहि‍ये
जि‍न्‍दगी 3 घंटे से ....
कुछ ज्‍यादा होती है।

6 comments:

वीना श्रीवास्तव said...

मां बाप का वृद्धाश्रमों में रहना,
बहू बेटियों का उघड़े बदन बहना।
बच्चों का टीवी चैनलों में गर्क होना।
सब कुछ फलता फूलता नर्क होना।

बहुत खूबसूरत पंक्तियां
और लाजवाब अंतिम पंक्तियां

मुझे भी समझना चाहि‍ये
जि‍न्‍दगी 3 घंटे से ....
कुछ ज्‍यादा होती है।

वीणा के सुर पर भी आइए और रचनाएं पसंद आएं तो मेरा ही नहीं जिसकी भी रचनाएं भाएं उसको फॉलो कर हौसला बढ़ाइए
http://veenakesur.blogspot.com/

M VERMA said...

मुझे भी समझना चाहि‍ये
जि‍न्‍दगी 3 घंटे से ....
कुछ ज्‍यादा होती है।
यकीनन जिन्दगी तीन घंटे से ज्यादा है ..
खूबसूरत रचना

रश्मि प्रभा... said...

जि‍न्‍दगी 3 घंटे से ....
कुछ ज्‍यादा होती है।
... kuch kahun usse behtar hoga aap apni ye rachna mujhe mail karen parichay aur tasweer ke saath 'vatvriksh'ke liye

राजभाषा हिंदी said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
मशीन अनुवाद का विस्तार!, “राजभाषा हिन्दी” पर रेखा श्रीवास्तव की प्रस्तुति, पधारें

Apanatva said...

ekdum samyik rachana...
sunder abhivykti........

शरद कोकास said...

ज़िन्दगी की एक नई परिभाषा है ।

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