Tuesday 28 September 2010

आदमी की औसत उम्र


फिजूल है
आदमी की औसत उम्र की बात

एक आदमी
बस 10 बरस में
बचपने की बेहोशी
भूख प्यास और खंडित कयासों से
दम तोड़ देता है

दूजा जीता है
बीमारियों
धुंधलकों
प्रश्नों,
और जिन्दगी की व्यर्थता के साथ
130 बरस

और आप
तीजे की औसत उम्र 70 बरस
घोषित कर देते हैं

तो फिजूल है
औसत उम्र का गणित


और वो सारे गणित
जो आप जिन्दगी के बारे में लगाते हैं
जिन्दगी का हर कदम
अपवादों की राह पर बढ़ता है

आपकी सांसे सदियों तक चल सकती हैं
आप इसी वक्त ‘सब कुछ से’ नाकुछ हो सकते हैं
और नाकुछ से सारा संसार

जिन्दगी के खेल का
यही मजा है
कि आप चाहें इसके नियम बनायें
चाहें अपवादों की राह चलें
आपका हासिल परिणाम नहीं
वो खेलना होता है,
जो आप खेल रहे हैं
जो आप तब तक खेल सकते हैं
जब तक कि वो क्षण नहीं आता
जिसका आपको नहीं पता है।

देखो आज मैंने
मौत शब्द का
कहीं भी इस्तेमाल नहीं किया।

8 comments:

विवेक सिंह said...

बहुत बढ़िया ।

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुंदर भाव युक्त
रचना है...बहुत बहुत बधाई...

vandana gupta said...

लेकिन आखिर मे तो कर ही दिया।

Apanatva said...

bahut gahree aur sacchee baat..............
sarahneey prastuti !

ZEAL said...

आपकी सांसे सदियों तक चल सकती हैं
आप इसी वक्त ‘सब कुछ से’ नाकुछ हो सकते हैं
और नाकुछ से सारा संसार

kadwa satya

.

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब .. न करते हुवे भी मौत शब्द का इस्तेमाल हो ही गया ....
पर बहुत गहरी बात भी कह दी साथ साथ ...

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

सही बात है ...तीसरे की उम्र का गणित ग़लत ही है क्योंकि या तो 140 को 3 से भाग देना चाहिये (अगर तीसरा अभी-अभी ही पैदा हुआ हो तो) या फिर 140 में तीसरे की उम्र भी जोड़ कर 3 से भाग देना चाहिये ताकि सही औसत निकाली जा सके :-))

शरद कोकास said...

बढ़िया कविता है ।

Post a Comment