पंजाबी साहित्य में "विरह के सम्राट" कहे जाने वाले
शिव कुमार "बटालवी" के काव्य का हिन्दी अनुवाद
कडी : 1
जब दूर चला जाऊंगा कहीं
अपने बेगाने ढूंढेगे
आज मुझे दिवाना कहते हैं
कल हो दीवाने ढूंढेगे
मुझे जानने पहचानने वालों से जब
लोग, मेरी बर्बादी का पूछेंगे
इक भेद छुपाने के लिए
वो क्या क्या बहाने ढूंढेगे
जब मस्त हवा ने खेल किकली
किसी शोख घटा का घूंघट उठाया
उस वक्त किसी की मस्ती को
रो रो मस्तान ढूंढेंगे
किकली: एक खेल है जिसमें लड़कियां एक दूसरे के हाथ हाथों में लेकर पैरों को केन्द्र बनाकर वृत्ताकार घूमती हैं।
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मित्रों को पत्र
पूनम के चांद को कोई अमावस
क्योंकर अर्ध्य चढ़ायेगी
क्यों कोई डाची सागर खातिर
मरूस्थल को तज जायेगी
डाची-ठेठ पंजाबी भाषा में ऊंटनी को कहते हैं।
कर्मो की मेंहदी का सजना
रंग किस तरह चढ़ पायेगा
जो किस्मत, मीत की पाती को
पैरों तले रौंदती जायेगी
गम का मोतिया उतर आया है
मेरे संयम के नैनों में
प्रीत नगर की कठिन डगर
जिंदगी कैसे तय कर पायेगी
कीकर के फूलों की मेरे मीत,
कौन करता है रखवाली ?
कब किसी माली की इच्छा
हरीतिमा बंजर को ओढ़ायेगी
प्रेम के धोखे खा खा कर
हो गये गीत विष से कड़वे
पतझड़ के आंगन में जिंदगी
सावन के गीत कैसे गायेगी
प्रीत के गले छुरी फिरती है
पर कैसे मैं रो पाऊंगी
मेरे गले में चांदी के हार
यही चंद कौढ़ियां फंसायेंगी
तड़प तड़प के मर गई है
तेरे मिलन की हसरत अब
इश्क की जुल्मी अदायें अब
विरह के बाण चलायेंगी
3 टिप्पणियां:
गैर पंजाबी पाठकों के लिए यह वास्तव में ही सद्प्रयास है.
धन्यवाद्
बहुत अच्छी लगी । शुक्रिया ।
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