मेरी काया में जो आत्मा सी है
उसके लौट आने की संभावना सी है
वो बदल ले मार्ग या सम्बंध बदल ले
वही रहेगी, जो प्रेम की भावना सी है
मैं पानी की तरह पटकता रहूंगा सर
उस पत्थर में विचित्र चाहना सी है
मैं क्यों उस मौन को नकार मान लूं
उस मौन में मेरी सराहना सी है
छानूंगा, गूंथूंगा, गढूंगा, कभी तो संवरेगी
उस मिट्टी में सौन्दर्य की प्रवाहना सी है
7 टिप्पणियां:
bahut khub
bahut khoob....
waah bahut sundar gazal...
मेरी काया में जो आत्मा सी है
उसके लौट आने की संभावना सी है ...
गज़ाब की बात कही है ... वैसे अगर आत्मा लौट आने की संभावना भी ही तो बहुत अच्छा है ...
bahut bahut sunder abhivykti..........
बहुत सुन्दर!
bahut umda likha hai aapney...
"छानूंगा, गूंथूंगा, गढूंगा, कभी तो संवरेगी
उस मिट्टी में सौन्दर्य की प्रवाहना सी है"
saundarya ko ukerne ki takat man ki hoti hai...kala, kavita,dharm,sanskriti- sabko yahi shakti janm deti hai...iss sey badi koi taakat nahi shayad...
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