सोमवार, 14 जून 2010

तुम कहती हो - ना डरा डरा सोचूं जो भी सोचूं हरा भरा सोचूं


तुम कहती हो ना
ना डरा-डरा सोचूं
जो भी सोचूं हरा-हरा सोचूं
तुम्हीं बताओ कैसे?

तुम बस एक ही बार मिली थी
मुझे साफ-साफ दिखा था
कि अब कोई मंजिल बाकी नहीं
पर तुम चलीं गयीं
अब सब बाकी है तुम्हारे सिवा
डर, घृणा, झूठ, बेबसी, अफसोस
और रोतले गीत, सिसकती गजलें

और अब फिर
क्या पता तुम हो भी कहीं?
वैसे ही जैसे कि
महसूस होती हो मेरे आसपास
तुम कहती हो - ना डरा डरा सोचूं
जो भी सोचूं हरा भरा सोचूं
तुम्हीं बताओ कैसे?
कि गांव खत्म हो गये हैं?
जहां बिना मतलब के बात करने वाले लोग थे
अब तो मुझे खुद
किसी से बेमतलब शब्द कहे या सुने
बरसों हो गये हैं

तुम थीं,
तुम कुछ भी नहीं थीं, ...
फिर भी तुम्हारा इंतजार रहता था
मैंने अजनबी होते हुए भी
तुमसे सबकुछ कहा था
यहां तक कि
वो सच भी
जिसे कहा नहीं जाता
‘‘कि मैं तुमसे प्यार करता हूं’’
पर तुमने सुना ही नहीं।
तुमने बरसों फैले
रेगिस्तान पर छोड़ दिया है रेत सा
और अब लौटी हो
एक मरीचिका बनकर
और कहती हो
कि जो भी सोचूं हरा हरा सोचूं।

पता नहीं तुम धोखा हो
या मेरा बुना हुआ सच
या पता नहीं किया
तुम बोलती हो मुझमें
या तुम्हारे बहाने में खुद से ही
बातें करने लगा हूं।
रेगिस्तानी सन्नाटे,
खुद से ही बातें करते हैं।

और देखो ना
कितना गहरा रेगिस्तान है
सीमेंट की इमारतें
लोहे की रेलिंग्स
गलतफहमियों की तरह
उस राह के हर ओर सजी हैं
जिस पर हजारों लाशें बिछीं हैं
जिन लाशों को
जिन्दा से दिखते लोग
रेत का भाव भी नहीं देते।

तड़क-भड़क-हवस से भरे माॅल
और अजनबी सी अंगे्रजी में
किसी भी उम्र की भीड़ में
तुम कहीं नहीं दिखती
ना मैं ही लायक रहा हूं
कि कॉल सेन्टर में काम कर सकूं

मेरे जिस्म में कुछ ढल सा गया है
जानबूझकर गलत अंजामों को जानते हुए
अब लड़ा सा नहीं जाता

बस कभी कभी
यही उम्मीद चमकती है
कि तुम थके हुए पार्कों में
कहीं मिल जाओ
अपने खेलते हुए बच्चों के किनारे
उस सुलझी हुई जिन्दगी से उदास
जिसके लिए
तुमने किसी भी प्रेम की आवाज
नहीं सुनी थी।

जो रहस्यमयी ऊर्जा से भरी आवाज
बहुत मंद हो कर
दुनियां के नक्कारखाने में
जब तब होती मौतों पर
अकेली ही गूंजती रहती है
जिसे कमउम्र लोग
निपट लीचड़पना और बोरियत
या राशिफल में लिखे
किसी आशंका सा
अपशकुन समझते हैं।

क्या पता तुम हो या नहीं ?
क्या पता मैं कितना बचा हूँ?

3 टिप्‍पणियां:

Apanatva ने कहा…

sunder par udaseen kar gayee aapkee abhivykti.....

रश्मि प्रभा... ने कहा…

तारीफ़ से ऊपर के जज़्बात .... बहुत ही गहरे

nilesh mathur ने कहा…

कमाल की रचना है, बेहतरीन!

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