सोमवार, 7 जून 2010

अब कोई नहीं लौटेगा वहां


कहीं मिलते कभी, कुछ कही, कुछ सुनी होती
कभी दीवानों की कोई याद ही बुनी होती
यूं तो सबने ही चले जाना है
इस दुनियां से किसी अजनबी सा
किसी के ख्यालों की कोई राह ही चुनी होती

तुम तो बेगाने रहे, बेगाना ही हमको जाना
ना कभी शिकवा किया, ना कभी मारा ताना
ख्वामखा ख्यालों में जवानी का मौसम गुजरा
कुछ एक पल के धागे, हमको भी दिये होते
सासें भी ली हैं, आहें भी जी हैं और हर पल मरें हैं
कि उम्रें गुजरीं, हम भी कभी जिए होते

अफसोस ज्यादा है उस गम से, जो मिला ही नहीं
हमको गिला यही कि, तुमसे कोई गिला ही नहीं
कोई वादा नहीं किया, कोई रिश्ता नहीं बना
ना मुड़के देखा तुमने, कारवां तन्हाईयों का
हम ही अन्जान रातों में उस चांद से बातें करते हैं
उस चांद का जो अपना कभी रहा ही नहीं

उस चांद का तो पता नहीं, किस आसमान में खो गया है
बस काले दिन हैं, और जलन भरी राते हैं
चांदनी डसती है, दीवानाघर की दीवारें तरसती हैं
कि कभी तो आयेगा हकीकत-सा, कोई मिलने वाला
वैसे साये सा नहीं, जो खुद ही कोई बुन लेता है।

3 टिप्‍पणियां:

Shekhar Kumawat ने कहा…

बहुत सुन्दर

achi rachna

badhai aap ko is ke liye

kunwarji's ने कहा…

"तुम तो बेगाने रहे, बेगाना ही हमको जाना
ना कभी शिकवा किया, ना कभी मारा ताना"

kya baat hai ji..

kunwar ji,

मनोज कुमार ने कहा…

अच्छी रचना!

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