गमजदा थमी धड़कने, धुंधली उम्मीदें, सोग हैं
और क्या किसे देखते, अपने ही जैसा हर कोई था
रोज रात को लौट के, जाना ही होता है वहां
मौत की राहें अजब, वैसे किसी का ना घर कोई था
जब भी बुरा सा कुछ हुआ, वो लफ्ज लब पर आ गया
नहीं खुदा सा नहीं कोई, था... दिल में बैठा डर कोई था
मेरे तजुर्बे झूठे थे, मेरा जानना इतिहास था
माजी में ही जीता रहा, मैं ही तो था, ना गर कोई था
मेरी नाउम्मीदी पस्त हो, जिस गाम पे थी ठहर गई
मेरी गरीब सी शक्ल को, जो तर करे, नहीं जर कोई था
और क्या किसे देखते, अपने ही जैसा हर कोई था
रोज रात को लौट के, जाना ही होता है वहां
मौत की राहें अजब, वैसे किसी का ना घर कोई था
जब भी बुरा सा कुछ हुआ, वो लफ्ज लब पर आ गया
नहीं खुदा सा नहीं कोई, था... दिल में बैठा डर कोई था
मेरे तजुर्बे झूठे थे, मेरा जानना इतिहास था
माजी में ही जीता रहा, मैं ही तो था, ना गर कोई था
मेरी नाउम्मीदी पस्त हो, जिस गाम पे थी ठहर गई
मेरी गरीब सी शक्ल को, जो तर करे, नहीं जर कोई था
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शब्दार्थ : सोग-शोक, लफ्ज-शब्द, तजुर्बे-अनुभव, माजी-अतीत, पस्त-हारकर, गाम-राह
तर- हरा भरा, जर -सम्पत्ति धन
7 टिप्पणियां:
dil ko bahut kuch kah janewali rachna
दिल को छू कर वही बैठ गयी जी आपकी ये रचना!
एक बेहद बारीकी से की गयी मन के विचारों की अभिवयक्ति!
कुंवर जी,
भावयुक्त रचना............."
बेहद सुन्दर. सचमुच दिल को झकझोर करने वाली. आभार.
bhabheenee kavita .
ग़रीबी सी शक्ल ... बेहद खूबसूरत बिम्ब है ।
बहुत कुछ कहती है आपकी रचना ... शशक्त ...
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