Thursday 8 April 2010

आदमी और होश

आदमी से होश संभलता नहीं है

लाखों योनियो से गुजरा हुआ इंसान
देवत्व से आती आवाजों से और भी परेशान हो जाता है
और तब निराशा उन्माद लाती है
एक गहन बेहोशी में जाने की बेताबी

त्रिशंकु स्वर्ग न मिल पाने के तथ्य से घबराकर
कई बार धरती की ओर कूदता है
वो चाहता है कि वो उस ऊंचाई
उस होश से बच सके
जिनसे उसकी आंखें कि‍सी स्वर्ग का मार्ग देख पाती हैं
दिखाती हैं
जि‍सके बारे में आज तक
ये भी  तय नहीं है
कि‍ वो कि‍तना हकीकत है



जो होश उसके कानों में उतर कर
संसार के कोलाहल में दिव्य आवाजें सुनाता है
क्योंकि और उपर उठने में
हजार बार नीचे गिरता है - निराधार अंहकार

आदमी पत्थर बन जाना चाहता है
क्योंकि चाहे अनचाहे
वो आज तक अपनी पशुता से नहीं उबर पाया है
नहीं उबर पया है
काटने, चाटने, चूसने की घृणित आवाजों से
नोचने, खंरोचने, भींचने के बर्बर अहसासों से
आदमी परेशान है
आंख, कान, नाक, हाथ, पैर जैसे जंगली अंगों से
परेशान है सांसों से,
जो दिल के धड़कने का कारण हैं
और अचानक कभी भी आने लगे हैं अब
हार्ट अटैक

इसलिए आदमी पत्थर हो जाना चाहता है
और कितने ही इंतजाम किये हैं उसने
5 हजार सालों में
वेद, कुरान गढ़े हैं
ईसाओं को सूलियों पर चढ़ाया है
सुकरात मीराओं को जहर के प्याले परोसे हैं

शनि, राहू, हनुमान से कई देवता
विश्वास और अंधविश्वास जैसे शब्दों के फेर गढ़े हैं

देखो मस्जिदों में अजानों की कैसेटें
पांचों बार पाबंदी से बजती हैं
सुनसान गायत्री मंदिरों में
नौकरी पर रखे गये आरती गायक का
साथ देती हैं घंटा, ताल और शंख बजाने वाली मशीने

वह दिन भी मैंने निकट ही देखा है
जब रोबोट
सारे मंत्रों का आदमी से करोड़ों गुना अच्छी तरह
उच्चारण कर लेंगे
और जब ब्रम्‍हा वरदान देने आयेंगे
तो उन्‍हें समझ ही नहीं आयेगा
कि‍ वो सृष्‍़ि‍ट कहां गयी जि‍समें
पशु और देवता के बीच की चीज
इंसान नाम का प्राणी रचा गया था।


रोबोट
कई तरह के दिव्य वातावरण गढ़ लेंगे
उनसे भी दिव्य
जो भांग, अफीम, गांजा और चरस
आदमी के अन्दर जाने पर
या बैठे बैठे रि‍मोट के बटनों से बदलते
असली रंगीन टीवी चैनलों पर
साक्षात दिखते और महसूस होते हैं
मुझे डर है
आदमी के गढ़े हुए रोबोट
कहीं आदमी से बेहतर कल्पनाएं ना करने लग जायें

रोबोटों को कहीं ये ना मालूम पड़ जाये
कि आदमी पत्थर होना चाहता है
क्योंकि ये तो उनके
विशिष्ट धातुओं से गढ़े हुए अस्तित्व की
आधारभूत और जन्मजात विशेषता ही है।
-- नि‍रन्‍तर --

2 comments:

संजय भास्‍कर said...

हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

रश्मि प्रभा... said...

आदमी पत्थर बन जाना चाहता है
क्योंकि चाहे अनचाहे
वो आज तक अपनी पशुता से नहीं उबर पाया है
नहीं उबर पया है
waah

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