रविवार, 5 जनवरी 2025

उम्रों की गैलरी में सजी फोटुएँ


यादें, उम्रों की गैलरी में सजी फोटुएँ हैं। कभी देखने, याद करने बैठ जाओ तो, आप अतीत में पोर्ट हो जाते हैं। लेकिन हम ऐसी यादों का ताना-बाना अभी भी बुन रहे होते हैं। यादें जीवन के मकड़जाल को बुनने वाला चिपचिपा जाला हैं।  मकड़ी के मुंह से ही वह तार या जाल निकलता है... जिससे वह शिकार के लिए ताना-बाना बनाती है। लेकिन अंततः जाले बुनने की क्षमता नष्ट हो जाने पर, अपने ही किसी अंतिम जाल में फंसकर मर जाती है।

ऐसे ही यादें हैं, जो मनुष्य जीवन बनाती हैं। मृत्युलोक में पैदा होना, किसी पाप का परिणाम... या शाप जैसा है। इसमें जीने को मिलता है क्योंकि मृत्यु सुनिश्चित होती है। इसमें जो भी मिलता है, खो जाने, छीन लिए जाने को मिलता है। ऐसी कोई चीज नहीं जो हमेशा आपके पास रहे, जिससे आप स्वयं को जोड़कर, स्थायी ‘‘आप’’... अमर ’‘मैं’’ बन जाएँ। ये अस्थायी चेतना, आपका होना, आपका अस्तित्व ही विचार मात्र, सपना या कल्पना है। पराये अजनबी अनजान हीं नहीं, जिनसे आपके रक्त संबंध हैं... वह भी उतने ही अजनबी, अनजान पराये हैं। क्या आप समझ पाते हैं कि, अब आपकी चेतना का आपसे क्या रिश्ता है?? ये चेतना क्या है?

शुक्रवार, 3 जनवरी 2025

निंदा रस आनंद फल

एक राजा ब्राह्मणों को, महल के आँगन में लंगर में भोजन करा रहा था। राजा का रसोईया खुले आँगन में भोजन पका रहा था।
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उसी समय एक चील अपने पंजे में एक जिंदा साँप को लेकर राजा के महल के उपर से गुजरी । तब पँजों में दबे साँप ने अपनी आत्म-रक्षा में चील से बचने के लिए अपने फन से ज़हर निकाला ।
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तब रसोईया जो लंगर ब्राह्मणो के लिए पका रहा था, उस भोजन में साँप के मुख से निकली जहर की कुछ बूँदें खाने में गिर गई। किसी को कुछ पता नहीं चला। फल-स्वरूप वह ब्राह्मण जो भोजन करने आये थे उन सब की जहरीला खाना खाते ही मौत हो गयी । अब जब राजा को सारे ब्राह्मणों की मृत्यु का पता चला तो ब्रह्म-हत्या होने से उसे बहुत दुख हुआ
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ऐसे में अब ऊपर बैठे यमराज के लिए भी यह फैसला लेना मुश्किल हो गया कि इस पाप-कर्म का फल किसके खाते में जायेगा .... ??
(1) राजा .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना जहरीला हो गया है .... या
(2 ) रसोईया .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना बनाते समय वह जहरीला हो गया है .... या
(3) वह चील .... जो जहरीला साँप लिए राजा के महल से गुजरी .... या
(4) वह साँप .... जिसने अपनी आत्म-रक्षा में ज़हर निकाला .... बहुत दिनों तक यह मामला यमराज की फाईल में अटका रहा ...
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फिर कुछ समय बाद कुछ ब्राह्मण राजा से मिलने उस राज्य मे आए और उन्होंने किसी महिला से महल का रास्ता पूछा ।
उस महिला ने महल का रास्ता तो बता दिया पर रास्ता बताने के साथ-साथ ब्राह्मणों से ये भी कह दिया कि ‘‘देखो भाई ....जरा ध्यान रखना वह राजा आप जैसे ब्राह्मणों को खाने में जहर देकर मार देता है।’’
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बस जैसे ही उस महिला ने ये शब्द कहे, उसी समय यमराज ने फैसला (निर्णय) ले लिया कि उन मृत ब्राह्मणों की मृत्यु के पाप का फल इस महिला के खाते में जाएगा और इसे उस पाप का फल भुगतना होगा ।
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यमराज के दूतों ने पूछा - प्रभु ऐसा क्यों ?? जब कि उन मृत ब्राह्मणों की हत्या में उस महिला की कोई भूमिका (तवसम) भी नहीं थी ।
तब यमराज ने कहा - कि भाई देखो, जब कोई व्यक्ति पाप करता हैं तब उसे बड़ा आनन्द मिलता हैं । पर उन मृत ब्राह्मणों की हत्या से ना तो राजा को आनंद मिला .... ना ही उस रसोइया को आनंद मिला .... ना ही उस साँप को आनंद मिला .... और ना ही उस चील को आनंद मिला। पर उस पाप-कर्म की घटना का बुराई करने के भाव से बखान कर उस महिला को जरूर आनन्द मिला । इसलिये राजा के उस अनजाने पाप-कर्म का फल अब इस महिला के खाते में जायेगा ।
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बस इसी घटना के तहत आज तक जब भी कोई व्यक्ति जब किसी दूसरे के पाप-कर्म का बखान बुरे भाव से (बुराई) करता हैं तब उस व्यक्ति के पापों का हिस्सा उस बुराई करने वाले के खाते में भी डाल दिया जाता हैं ।
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अक्सर हम जीवन में सोचते हैं कि हमने जीवन में ऐसा कोई पाप नहीं किया, फिर भी हमारे जीवन में इतना कष्ट क्यों आया .... ? ये कष्ट और कहीं से नहीं, बल्कि लोगों की बुराई करने के कारण उनके पाप-कर्माे से आया होता है जो बुराई करते ही हमारे खाते में ट्रांसफर हो जाता हैं ...
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#हो सकता है, ऐसा होता हो। #ho sakta hai aisa hota ho

रविवार, 18 अगस्त 2024

मुजरिम बनोगे? Video Song

Thursday 10 March 2011 को लिखी ये लाईने सुनिये इस बार स्वरबद्ध, सुसंगीत और वीडियो सहित।



 https://youtu.be/2S928rHLEqI?si=yTNuT1lT5dKHylRg

रविवार, 24 दिसंबर 2023

रिश्ते का लौटना "Returning of a relationship"

इसमें इंतजार रहता है।

इस तरह लौटना अच्छा लगता था।


पिता जी, दादा जी और नाना जी हर सुबह, 

मेरे जागने से पहले जाते थे ड्यूटी पर।

फिर लौटते थे, शाम होने पर।

रोज।


मां साल में एक आध बार

गांव जाती थी।

सारे रिश्तों में डालकर खाद ।

लौटती थी महीने-दो महीने बाद।


मां कभी-कभी, बहुत बीमार होने पर 

अस्पताल जाती थी।

नहीं आती थी एक-दो दिन।

फिर थोड़ी-थोड़ी-सी स्वस्थ 

लौटती थी।


बहन साल में एक आध बार

लौटती थी घर-द्वार।

लेने उधार।

इस तरह लौटना अच्छा लगता था।


फिर एक दिन 

मां अस्पताल गई, तो डॉक्टरों ने कहा -

‘‘अब ये लौटने वाली हैं- वहाँ... जहाँ से कोई नहीं लौटता।

और वो कभी नहीं लौटीं।

पिता जी भी नहीं लौटे।

इस तरह न लौटना बहुत बुरा लगता है।

इंतजार करने की मोहलत नहीं मिलती।


कभी चाचा, कभी मामा

कभी कोई कोई पड़ोसी

परदेस से लौटता तो

उसकी कीमत बढ़ जाती थी।

हर कोई तो नहीं लौट कर

वापिस आता।


फिर सुना-

बच्चे परदेस जाते थे तो

नहीं लौटते थे

घर वालों, इंतजार करने वालों की 

मौत पर भी।

इस तरह न लौटना बहुत बुरा लगता है।

इंतजार करने की मोहलत नहीं मिलती।


नहीं लग पाते 

किसी रिश्ते के कभी न लौटने के कयास। 

नहीं बन पाती.. 

किसी रिश्ते के कभी न लौटने की भूमिका।

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There is waiting in it.

Returning in this way felt good.


Father, grandfather, and grandmother, every morning,

Used to go on duty before I woke up.

Then they would return in the evening.

Every day.


Mother went to the village once or twice a year.

After putting manure in all the fields of relations.

She would return after a month or two.


Mother sometimes, when very sick,

Used to go to the hospital.

Would not come for a day or two.

Then return a little healthier.


Sister would return home once or twice a year.

To collect debts.


Returning like this felt good.


Then one day,

When mother went to the hospital, the doctors said -

‘‘Now she is going to return from there... where no one returns from.

And she never returned.

Father never returned either.


Not returning like this feels very bad.

There is no chance to wait.


Sometimes uncle, sometimes maternal uncle,

Sometimes some neighbor returning from abroad,

The value of returning increased.


Not everyone who goes returns.


Then heard -

When children went abroad,

They did not return

Even on the death of family members waiting for them.


Not returning like this feels very bad.

There is no chance to wait.


Unable to find-Any estimate of a relationship with.

Unable to assume - Any relationshiop of never returning in.

बुधवार, 24 अगस्त 2022

मन Mind


जब कोई गुजर जाता है
मंडराता है आस-पास
जो हैं, उन यादों में रहता है
जो हैं, उन सपनों में आता है
अपना ना होना जताता है

कहता है - अब देह नहीं हैं।
जहाँ रहती यादें, वो शीश नहीं
वो गेह नहीं है।
जिन यादों से मन बनता है।
जिस मन से दुनियां बनती है।
जिस मन से जीवन चलता है।

जब कोई गुजर जाता है
जीवन मृत्यु की अनिश्चितता के परे
जीवन मृत्यु की अनिश्चितता से उपजे भय से परे
क्या वाकई वो शांति पाता है?

या यादें सब संग जाती हैं
या सारा मन संग जाता है
यादें फिर ढूंढती हैं कोई शीश-कोई देह, कोई गेह
फिर फैलता है व्यापार पसंद नापसंद नफरत नेह
लौट आता है

फिर
जीवन मृत्यु की अनिश्चितता में
जीवन मृत्यु की अनिश्चितता से उपजे भय में
क्या वाकई वो शांति पाता है?


रविवार, 24 जुलाई 2022

एक तड़फड़ाहट


हम अपने आज को ‘आज’ की तरह गिनते ही नहीं। हम उसे बीते कल,परसों, महीनों या सालों के रूप में जानते हैं। एक आम आदमी को तो वह दशकों के रूप में याद रहता है। कुछ लोग दस बरस पहले की कहानी को कहते हैं - ‘कल ही की तो बात है’। वर्तमान या आज को आदमी टालता है। सुविधाजनक जिंदगी के बहाने बहुत सारे हैं। अभी तो पढ़ाई खत्म हुई, नई नौकरी है, अभी-अभी तो शादी हुई है, पत्नी गर्भवती है, बच्चा बड़ा हो रहा है, बच्चा स्कूल जाने लगा है, वक्त खराब है, अब कौन ढूंढे दूसरा नौकरी धंधा, पिता जी की डेथ हो गई, मां की बीमारी, बहन का ब्याह। सुविधाजनक या खुशहाल जिंदगी, आदमी को आलसी-निकम्मा बनाती है। वह किताबों, अखबारों, टीवीसीरीज की चादर ओढ़ कर भौतिक जीवन, मौसमी धूपछांव-बारिश के मज़े लेता है, हर हाल में आज को कल में टालता है... कल ही बना देता है। फलस्वरूप उसकी जिंदगी के 6-7 दशक में से सभी के सभी निकल जाते हैं. और फिर किसी दिन किसी 'आज'... मौत सामने नहीं.... उसी सुविधाजनक या खुशहाल जिंदगी की चादर में उसके साथ दुबकी बैठी, लेटी होती है।

...
आज को हम कभी कभार, कभी कहीं ही जीते हैं। दफ्तर धंधे से ली गई आधी या पूरी छुट्टी में, किसी को रेलवेस्टेशन विदा करने जाना हो या अर्थी का कंधा देने। किसी के जन्मदिन—शादी पर जाने या उदास होकर किसी मंदिर जाने, देर रात सस्ते हाट में सब्जी लेने जाने, या अस्पताल में भर्ती किसी परिचित को देखने जाने के दौरान ही हम आज का कुछ अंश जीते हैं। हमारे अधिकतर 'आज' का हिस्सा स्मार्ट—फोन की रील में खोये हुए.. दुकान या स्कूल के स्टूल—बैंच की सीट तोड़ते या दफ्तर की बोरियत में उस वक्त काटते हुए बीतता है, जो वक्त हमें काट और बिता रहा है।
..
हमारे साल के 365 नहीं, दशकों-दशक, स्कूटर मोटरसाईकिल की किश्तों, होम लोन ई.एम.आई, बच्चों की पढ़ाई- लिखाई के लिए नई नौकरी-धंधे आदि की जद्दोजहद जुगाड़ में ही निकल जाते हैं। जिनकी जिंदगी पर कोरोना का हंटर पड़ा वो जानते हैं कि किस मजाक में 2-3 साल निकल गये।
..
तो क्या आलस और निकम्मेपन से ग्रस्त एक आम आदमी ही इसके लिए जिम्मेदार है या कुछ बहुत कम ऐसे लोग हैं जो बहुत सारे ऐसे लोगों को, उनके सिर पर आगे निकले डंडे में गाजर बांधकर कोल्हू में जोते हुए हैं। धन संपत्ति, सुनिश्चितता सुविधा की बागड़ ही जीवन के खेत को खाये जाती है।
...
इस तरह खुल्लम-खुल्ला मद्धम आत्महत्या का क्या अर्थ है? हम जी नहीं रहे, संघर्ष-अनिश्चितता को सामना नहीं करते, सुनिश्चितता-सुविधा के चक्कर में दिनों-दिन, हम हर दिन... हर रोज... हर आज को मृतप्राय बिता रहे हैं। और हम में से कौन नहीं जानता कि आज और अभी का जीवन ही जीवन है। जो बीता वह कल बीत गया है जो आने वाला है उसकी भी चिंता व्यर्थ है... पर आज अभी जो सांसें ली जा रही हैं, उस अनुलोम विलोम पर नजर रखने... उस घबराहट का सामना करने में ही असली जीवन है।
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हकीकत क्या है? क्या समय—समय पर जांचते रहा जाये कि कौन सी ख्वाहिशें किस तरह कर्ज की किश्तों को बढ़ा रही हैं और जिंदगी के दशकों-दशक घटा रही हैं।। जब कर्ज मिलता है तो सुख—सुविधा की खरीद बड़ी आसान हो जाती है... पर इसके साथ मिलनी वाली गुलामी... किश्तें, ईएमआई'यां, इन्हें चुकाने में आपके बाल या तो सफेद हो जायेंगे या झड़ जायेंगे और बाल किसी तरह बच भी जायें बाकी छत्तीस बीमारियों का अंदेशा बढ़ जायेगा। आपकी तोंद निकल आयेगी, शरीर बेडौल हो जायेगा, नजर कमजोर हो जायेगी और... बाकी जो आपने महसूस किया।
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दूजा जरूरी है कि समय समय पर हम अपने जीवन की प्राथमिकताएं तय करें। लक्ष्य बनायें पर ये एक दिन या हफ्ते या ज्यादा से ज्यादा मासिक लक्ष्य हों। यानि इच्छाओं, सुख-सुविधाओं का उगना, उन्हें पाल पोस कर बढ़ा करना और फिर विदा करने का समय तय हो। याद रखिये मौत अचानक आनी है उसे आपके लक्ष्यों और उन्हें प्राप्त करने की योजनाओं से कोई सरोकार लेना देना नहीं है। मौत को याद रखा जाना, यही एकमात्र याद आपके हर काम में मददगार साबित होगी।

बुधवार, 8 दिसंबर 2021

अभी यहीं...किसी बुद्ध की तलाश

 किसी बुद्ध को ढूंढने चले हो तो, बस आपको ये करना है कि सुबह से शाम रात तक खुद पर नज़र रखें, अपनी मूल प्रकृति को देखें।

To find a Buddha all you have to do is see your nature.
~ Bodhidharma

बुधवार, 13 अक्टूबर 2021

सन्यास यानि​ अमरत्व का स्वाद

इस मरने वाले शरीर के लिए संस्कृत में शब्द है 'देह'। इसे देह इसलिए कहा जाता है क्योंकि आखिरकार आखिरी सफर में इसे दाह संस्कार द्वारा अग्नि को सौंपा समर्पित किया जाता है.. दाह संस्कार किया जाता है। जिसे दहन किया जाता है वह देह ताकि इससे मुक्त आत्मा अब परमात्मा को प्राप्त हो।

कुछ हिन्दू, अपनी मर्जी से जीवन जीने का एक तरीका चुनते हैं जिसे सन्यास कहा जाता है। इसके तहत भलेचंगे रहते, जीते जी वे अपना दाह संस्कार स्वयं ही संपन्न कर लेते हैं. इस तरह वह अग्नि से अपना नाता तोड़ते हैं।

एक सन्यासी का मतलब ही है, आग से नाता तोड़ चुका व्यक्ति। न तो भोजन के लिए आग का इस्तेमाल करेगा, जलायेगा न अपने देह में आग को पलने बढ़ने का मौका देगा न जीवन में भौतिकता की आग भोग.ऐश्वर्य को हवा देगा। बल्कि बस खाकराख हो रहेगा, धरती माता को समर्पित हो रहेगा, जमीन का आदमी हो रहेगा, जमीन ही हो रहेगा।

जागृत परमतत्व को पहुंची आत्माएं, जिन्होंने इस नश्वर देह के होते हुए ईश्वर का साक्षात्कार किया वो भी धरती को अर्पित की जाती हैं। जो समाधि को प्राप्त हुए, उनकी समाधि बनाई जाती है।

भगवान शिव आराधकों शैवों की समाधि पर शिवलिंग स्थापित किया जाता है इसे 'अधिष्ठानम' कहते हैं। विष्णु भक्त वैष्णवों की समाधि पर तुलसी का पौधाबिरवा रोपा जाता है जिसे ''वृन्दावनम्'' कहते हैं। अधिष्ठानम और वृन्दावनम् दोनों को जीवित गुरू मानकर लोग उनकी पूजाआराधनाप्रार्थना करते हैं। उनसे मार्गदर्शन, आशीष लेते हैं ताकि वो भी इस नश्वर मरणधर्मा शरीर के साथ ही सम्पन्न हो जायें, वो भी अमरत्व का स्वाद चख सकें।

श्री रमण महर्षि की समाधि अधिष्ठानम है। वहीं श्री राघवेन्द्र स्वामी की समाधि ​​बृन्दावनम है। अधिष्ठानम में आत्मा अपने सृजनकर्तासृजक के साथ एकाकार हो जाती है। जबकि बृन्दावनम में आत्मा सृष्टिकर्ता की सृष्टि से ही एकाकार हो जाती है। हालांकि सनातन धर्म में सृजकसृष्टा और सृष्टि भिन्न नहीं विचारे जाते, अद्वैत कहे जाते हैं।

The Sanskrit word for this mortal body is “Deha” and it is called so because at the end of its journey, it is submitted to fire by a process/Sanskara called “Dahana” to enable attainment of ParamAtma for the departed soul.

Some Hindu, may have chosen for themselves a path of Sanyasa(monkhood) wherein they would have conducted their own funeral rites while alive, and hence broken their relationship with fire/agni.

A Sanyasa is by himself, forbidden to use fire to cook food (or) thrive (or) possess any wealth in a material form.

The Sanyasa are not submitted to Fire at the end of their mortal journey, but are surrendered to Earth.

Some enlightened souls, who have attained to God realisation in their mortal lifetime are also surrendered to Earth, and on their Samadhi(tomb) if installed a “Shiva Lingam” it is called as “ADHISTANAM” & if installed a Tulasi/Basil plant is to be called as “BRINDAVANAM”.

The ADHISTANAM is a Shaivite tradition while the BRINDAVANAM is more a VaiShnava tradition.

The beings of the ADHISTANAM & BRINDAVANAM are both considered as living masters and people offer prayers, seek guidance & blessings from these souls who have now transformed from being “Finite to Infinite”

Ex:ADHISTANAM> Sri Ramana Maharshi & BRINDAVANAM>Sri Raghavendra Swamy.

In an ADHISTANAM the soul is identified as being one with the CREATOR, while in the BRINDAVANAM the soul is identified as one with the CREATION.

In Sanatana Dharma, the Creator & Creation are considered not separate & aDwaita.