गुरुवार, 7 जनवरी 2016

दिनों महीनों सालों तक


दिनों महीनों सालों तक
बस वही दिन. बस वही रात
दिनों महीनों सालों तक
रोटी.रोजी.बोटी की बात

दिनों महीनों सालों तक
तू, मैं, तू—तू मैं—मैं
दिनों महीनों सालों तक
ओह!, अच्छा, हैं...?

दिनों महीनों सालों तक
गंवाई यूं ही सांसें
दिनों महीनों सालों तक
महसूसी दिल में फांसें


दिनों महीनों सालों तक
मशीनों में पालन पोषण
दिनों महीनों सालों तक
कौटिल्यों ने किया शोषण

*चाणक्य को कौटिल्य भी कहा जाता है, उनकी कुटिल व्यवहार परंपरा के कारण

दिनों महीनों सालों तक
मजबूरियों का साथ
दिनों महीनों सालों तक
खुदगर्जियों की लात

दिनों महीनों सालों तक
हकीकत से बचना,
दिनों महीनों सालों तक
कोई कुनकुना सपना

दिनों महीनों सालों तक
कृष्ण का कहा धर्म
दिनों महीनों सालों तक
कोशिश,श्रम और कर्म

दिनों महीनों सालों तक
असफलताएं, कुंठाएं
दिनों महीनों सालों तक
मौत की याद, हाय! हाय!

दिनों महीनों सालों तक
भेड़ों की भीड़ में भेड़ रहे
दिनों महीनों सालों तक
खरपतवार, हरा ढेर रहे

दिनों महीनों सालों तक
किसी जीवन की तलाश रही
दिनों महीनों सालों तक
मौत ही सदा पास रही

दिनों महीनों सालों तक
बस निरर्थकता को महसूसा
दिनों महीनों सालों तक
इच्छाओं ने सोखा, चूसा

दिनों महीनों सालों तक
जलन, कुढ़न और बदले
दिनों महीनों सालों तक
रहे वही, नहीं बदले

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