काग़ज की कश्ती, पानी का किनारा था
मन में मस्ती थी , दिल ये आवारा था
आ गये कहां से, ये समझदारी के बादल
वो नादान बचपन, कितना ही प्यारा था
वो कंचों की खन-खन में दिन का गुजरना
यारों का झुण्डों में, मुहल्लों में टहलना
साईकिल पर मीलों तक, वो शाम की सैरें
उन सुबह और रातों का, मोहब्बत में बहलना
हैं यादें वो शीरीं, वो दिल की अमीरी
जेबों से फक्कड़ था, हिसाब में नाकारा था
वो नादान बचपन, कितना ही प्यारा था
वो मीनू से यारी, वो सोहन से कुट्टी
वो मोहन से खुन्नस, वो गोलू की पिट्टी
था कौन सा काम? कि ना हो पहला नाम
पतंग उड़ानी हो या गढ़नी हो मिट्टी
अजब थी अदा, थे सबसे जुदा
कहते सब बदमाश, और सबसे न्यारा था
वो नादान बचपन, कितना ही प्यारा था
फिर कहानियों से यारी,, फिर इश्क की बीमारी
दिन रातें खुमारी,, फिर सपनों की सवारी
नहीं जानते थे कि ऐसा, ना रहेगा हमेशा
बेफिक्री की सुबहें, रातें तारों वाली
लगता वहीं तक बस, जीवन सारा था
वो नादान बचपन, कितना ही प्यारा था
मन में मस्ती थी , दिल ये आवारा था
आ गये कहां से, ये समझदारी के बादल
वो नादान बचपन, कितना ही प्यारा था
वो कंचों की खन-खन में दिन का गुजरना
यारों का झुण्डों में, मुहल्लों में टहलना
साईकिल पर मीलों तक, वो शाम की सैरें
उन सुबह और रातों का, मोहब्बत में बहलना
हैं यादें वो शीरीं, वो दिल की अमीरी
जेबों से फक्कड़ था, हिसाब में नाकारा था
वो नादान बचपन, कितना ही प्यारा था
वो मीनू से यारी, वो सोहन से कुट्टी
वो मोहन से खुन्नस, वो गोलू की पिट्टी
था कौन सा काम? कि ना हो पहला नाम
पतंग उड़ानी हो या गढ़नी हो मिट्टी
अजब थी अदा, थे सबसे जुदा
कहते सब बदमाश, और सबसे न्यारा था
वो नादान बचपन, कितना ही प्यारा था
फिर कहानियों से यारी,, फिर इश्क की बीमारी
दिन रातें खुमारी,, फिर सपनों की सवारी
नहीं जानते थे कि ऐसा, ना रहेगा हमेशा
बेफिक्री की सुबहें, रातें तारों वाली
लगता वहीं तक बस, जीवन सारा था
वो नादान बचपन, कितना ही प्यारा था
- राजेशा
मूल पंक्तियाँ-
कागज की कश्ती थी पानी का किनारा था, खेलने की मस्ती थी दिल ये आवारा था
कहां आ गए इस समझदारी के बादल में, वो नादान बचपन ही कितना प्यारा था- यश लखेरा, मण्डला, मप्र
9 टिप्पणियां:
Bahut khoob Rajey ji. Bahut khoob. Hindi bhasha kitni ubhar ke ayi hai is kavita main, aur mujhe bhi purane din yaad aa gaye :) main sabse kutti karne main tez thi :D
Photo, kavita ko aur bhi nikhar rahi hai :)
लगता वहीं तक बस, जीवन सारा था
वो नादान बचपन, कितना ही प्यारा था
बिल्कुल सच कहती हर पंक्ति ।
हर किसी को बचपन की याद दिलाती सुंदर कविता
कभी समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागता है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
waah... wakai bachpan kitna pyaara tha...
yaadon ko sametne k liye bahut-bahut shukriya...
आहा...बेहतरीन...क्या खूब रचना है आपकी...बधाई स्वीकारें
नीरज
Duabar padh raha hoon...sach lajawab rachna hai...
इस समझदारी की शाम में खो गयी है नादानी वाली सुबह..
आज सोता हूँ यही सोचकर कि वो बचपन फिर लौट आएगा!!
बेहतरीन अभिव्यक्ति बचपन के यादों की..
आभार
तेरे-मेरे बीच पर आपके विचारों का इंतज़ार है...
bahut hi pyari kavita...sachmuch sabka bachpan aisa hi hota hai!!
koi loata de mere vitey hue din.
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