शनिवार, 27 अगस्त 2011

झूठ के जलवों में खोना क्यों?

झूठ के जलवों में खोना क्यों?
खुदा का दोषी होना क्यों?

सब विधना की मर्जी है,
फिर तकदीर का रोना क्यों?

सब कुछ यहीं रह जाना है,
पाप-पुण्य का ढोना क्यों?

दर्द भी उसकी रहमत है,
पल-पल आंख भिगोना क्यों?

दसों दिशा वहीं मुस्काये,
जप तप जादू टोना क्यों?

उससे जनम उसी में मरण

पाना क्‍या  क्या और खोना क्यों?

अन्तर क्षीर है, अमृत है,
बाहर नीर, बिलौना क्यों?

अन्दर खोज खजाने पगले,
बाहर पकड़े दोना क्यों?

पत्थर छोड़ दे इगो का,
खुद ही खुद को डुबोना क्यों?

मौत अचानक आती है,
घोड़े बेच के सोना क्यों?

सपनों में भी ना आये,
उसका दर्द संजोना क्यों?

यूं तो दुनियां भूल गये,
आंखों में वो सलोना क्यों?


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2 टिप्‍पणियां:

रजनीश तिवारी ने कहा…

पत्थर छोड़ दे इगो का,
खुद ही खुद को डुबोना क्यों?
सभी पंक्तियाँ बहुत बढ़िया ...धन्यवाद

Rajeysha ने कहा…

अभि‍नन्‍दन, धन्‍यवाद रजनीश जी आपकी एक टि‍प्‍पणी शतक सी लगी।

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