गुरुवार, 10 मार्च 2011

मुजरिम बनोगे?


नहीं देते, मत दो दिखाई, मुजरिम बनोगे?
बेवजह न दो सफाई, मुजरिम बनोगे?

देखो-सुनो-कहो, सच की तारीफ करो
सच के लिए न करो लड़ाई, मुजरिम बनोगे?

दिलासे दो, दिलासे लो, मुर्दे विदा करो
न सोचो, कब, किसकी आई, मुजरिम बनोगे?

कर गुलामी, इच्छाएं पालो, झूठे अहं पालो
सिर कफन बांधा, होगी हंसाई, मुजरिम बनोगे?

दुनियां है नक्कारखाना अपनी ही रौ में
तुमने जो, अपनी तूती बजाई, मुजरिम बनोगे

9 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

नक्कारखाने में तूती बजाने से कोई मसला हल नहीं होता
मुजरिम बना देने की ही संभावना है

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

दुनियां है नक्कारखाना अपनी ही रौ में
तुमने जो, अपनी तूती बजाई, मुजरिम बनोगे

ek dum se alag si rachna...andar tak jhakjhorne wali..!

Kailash Sharma ने कहा…

कर गुलामी, इच्छाएं पालो, झूठे अहं पालो
सिर कफन बांधा, होगी हंसाई, मुजरिम बनोगे?

बहुत सटीक प्रस्तुति..बहुत सुन्दर

संध्या शर्मा ने कहा…

दुनियां है नक्कारखाना अपनी ही रौ में
तुमने जो, अपनी तूती बजाई, मुजरिम बनोगे

वर्तमान परिस्थितियों पर सटीक प्रहार... बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

Arshad Ali ने कहा…

Aapne satik baat kahi..

Muzrim to har haal me banna hin hai..kya karen.

achchhi kavita.

विशाल ने कहा…

दुनियां है नक्कारखाना अपनी ही रौ में
तुमने जो, अपनी तूती बजाई, मुजरिम बनोगे

बहुत ही खूब.
सलाम.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

दिलासे दो, दिलासे लो, मुर्दे विदा करो
न सोचो, कब, किसकी आई, मुजरिम बनोगे?

Lajawaab andaaz hai likhne ka aaoka .. sach hai ..ye sochne mein kya rakha hai ..

बेनामी ने कहा…

"देखो-सुनो-कहो, सच की तारीफ करो
सच के लिए न करो लड़ाई, मुजरिम बनोगे?
...
कर गुलामी, इच्छाएं पालो, झूठे अहं पालो
सिर कफन बांधा, होगी हंसाई, मुजरिम बनोगे?

दुनियां है नक्कारखाना अपनी ही रौ में
तुमने जो, अपनी तूती बजाई, मुजरिम बनोगे"

बहुत सटीक और सार्थक

pragya ने कहा…

एक करारा से सच का प्रहार..

एक टिप्पणी भेजें