शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

इतनी जल्‍दी में .... हम बस वहीं पहुंचेंगे


लोग बहुत जल्‍दी में हैं
आंखे होते हुए भी देखना नहीं चाहते
कान होते हुए भी सुनना नहीं चाहते
और इसी तरह
लोग अपने जि‍स्‍म की ताकतों से भी दूर होकर
लोग बस भाग रहे हैं
यहां तक कि‍ उन्‍हें यह भी नहीं पता
कि‍ वो कब उड़ने लगे हैं

लोग बहुत जल्‍दी में हें
झूठ की फि‍सलन भरी राहों पर
जैसे हवाई जहाज से
आत्‍म हत्‍या के लि‍ये कूदा हुआ कोई आदमी
कि‍सी के भी हाथ में नहीं आये
यहां तक की सच के भी

लोग बहुत जल्‍दी में हैं
बटोर ले जाना चाहते हैं
धन दौलत, और
अपनी हवस के सारे अनुभव
इस धरती के पार तक
कि‍सी अनजान ग्रह पर

लोग बहुत जल्‍दी में हैं
इतनी जल्‍दी में
कि‍ उन्‍हें खुद नहीं मालूम
कि‍ वो कि‍स राह पर हैं

और उस राह की
कोई मंजि‍ल है भी या नहीं

लोग बहुत जल्‍दी में हैं
और जि‍से वो जि‍न्‍दगी की जुगाड़ कहते हैं
उस इंतजाम में खोये हुए
वो बस अचानक
खुद ही
वहां पहुंच जाते हैं जि‍ससे बचते हुए
लोग बहुत जल्‍दी में होते हैं हर वक्‍त


लोग बहुत जल्‍दी में हैं
और अचानक अपने आपको पाते हैं उस शै के सामने 
जि‍से 'अचानक' शब्‍द का पर्याय कहते हैं।

लोग बहुत जल्‍दी में हैं
कि‍सी के भी हाथ नहीं आते
सि‍वा मौत के।

5 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

यथार्थमय सुन्दर पोस्ट
कविता के साथ चित्र भी बहुत सुन्दर लगाया है.

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत प्रेरणा देती हुई सुन्दर रचना ...
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ !!

Happy Republic Day.........Jai HIND

केवल राम ने कहा…

लोग बहुत जल्‍दी में हैं
कि‍सी के भी हाथ नहीं आते
सि‍वा मौत के।

गंभीर जीवन दर्शन से ओत प्रोत कविता ...सच में आज दुनिया की यही स्थिति है ...आपने बहुत बेबाकी से वर्णन किया है ...एक उम्दा और अर्थपूर्ण कविता प्रस्तुत करने के लिए आपका धन्यवाद

Kailash Sharma ने कहा…

लोग बहुत जल्‍दी में हैं
बटोर ले जाना चाहते हैं
धन दौलत, और
अपनी हवस के सारे अनुभव
इस धरती के पार तक
कि‍सी अनजान ग्रह पर
...

बहुत सही कहा है..बहुत सार्थक और सटीक व्यंग.

Sandip Sital Chauhan ने कहा…

लोग बहुत जल्‍दी में हैं
कि‍सी के भी हाथ नहीं आते
सि‍वा मौत के।
so true!!!

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