शनिवार, 3 जुलाई 2010

हर तरफ, तेरी याद बिखरती देखी

जब कभी, कहीं, बारिश बरसती देखी
हर तरफ, तेरी याद बिखरती देखी

यूं तो मेरे दिल सा, बुझदिल कोई ना था
तुम मिले, इसी दिल से, दुनिया डरती देखी

तेरी याद के गहरे सन्नाटे में अक्सर
इक हूक सी उठती-उभरती देखी

कि हमने ख्वाहिशों को पालना ही छोड़ दिया
तेरी जुदाई में, ख्वाहिशें सभी, मरती देखी
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6 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खूबसूरत गज़ल

vandana gupta ने कहा…

bahut hi sundar .

रश्मि प्रभा... ने कहा…

जब कभी, कहीं, बारिश बरसती देखी
हर तरफ, तेरी याद बिखरती देखी
waah

शरद कोकास ने कहा…

बारिश का बरसना अच्छा लगा ।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

जब कभी, कहीं, बारिश बरसती देखी
हर तरफ, तेरी याद बिखरती देखी..

बारिश की कहानी ग़ज़ल के माध्यम से ..... मदमस्त कर देती है बारिश की बूँदें ....

Rahul Singh ने कहा…

a very nice poem. I really liked it.

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