बुधवार, 3 मार्च 2010

तुमसे बातचीत


मैंने तो खूब चाहा था
कि आज रात...
चांद से बोल-चाल बंद रखूं।

पर, तुमने आज भी चेहरा छिपा रखा था
बेजुबान शब्दों की खामोशी में।

मेरे जलते हुए सीने में
सूरज रोज डूबता है।

और हर रात मैं -
सुबह तक चांद से बातें करता हूं।
कि, कभी तो तुम्हारा चेहरा समझ आयेगा
और उसके कहे हुए,
अबोले शब्द भी।

13 टिप्‍पणियां:

विवेक रस्तोगी ने कहा…

चांद से बोल चाल बंद रखूं...

वाह क्या बात है.. वाकई मान गये ... बेहतरीन

बेनामी ने कहा…

वाह - वाह - वाह.
इतने कम शब्दों में इतनी बड़ी बात - अति प्रशंसनीय रचना के लिए हार्दिक बधाई

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

मैंने तो खूब चाहा था
कि आज रात...
चांद से बोल-चाल बंद रखूं।

पर, तुमने आज भी चेहरा छिपा रखा था
बेजुबान शब्दों की खामोशी में।

क्या कहूँ....? आपने तो निःशब्द कर दिया है.... बहुत सुंदर शब्दों के साथ.... मनभावन रचना....

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

बहुत रूमानी.

Apanatva ने कहा…

acchee rachana.........

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सुन्दर और भावपूर्ण.

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत खूब सुन्दर रचना

आभार

रश्मि प्रभा... ने कहा…

मैंने तो खूब चाहा था
कि आज रात...
चांद से बोल-चाल बंद रखूं।..kamaal ke lafz hain

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मेरे जलते हुए सीने में
सूरज रोज डूबता है।

और हर रात मैं -
सुबह तक चांद से बातें करता हूं ..

वाह .. कितना नाज़ुक एहसास है ... चाँद से बोल चल बंद रखूं ...

vandana gupta ने कहा…

bada gahre utar gaye is baar to.......gazab kar diya.........bahut hisundar bhav sanyojan.

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

मेरे जलते हुए सीने में
सूरज रोज डूबता है।

sundar abhibyakti hai...

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह .. कितना नाज़ुक एहसास है ... चाँद से बोल चल बंद रखूं ...

amrendra "amar" ने कहा…

मैंने तो खूब चाहा था
कि आज रात...
चांद से बोल-चाल बंद रखूं।

पर, तुमने आज भी चेहरा छिपा रखा था
बेजुबान शब्दों की खामोशी में।
sunder sabdo se sajaya hai aapne rachna ko kahi se bhi ojhal nahi hui najro ke samne se.....badhai

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