मैंने तो खूब चाहा था
कि आज रात...
चांद से बोल-चाल बंद रखूं।
पर, तुमने आज भी चेहरा छिपा रखा था
बेजुबान शब्दों की खामोशी में।
मेरे जलते हुए सीने में
सूरज रोज डूबता है।
और हर रात मैं -
सुबह तक चांद से बातें करता हूं।
कि, कभी तो तुम्हारा चेहरा समझ आयेगा
और उसके कहे हुए,
अबोले शब्द भी।
13 टिप्पणियां:
चांद से बोल चाल बंद रखूं...
वाह क्या बात है.. वाकई मान गये ... बेहतरीन
वाह - वाह - वाह.
इतने कम शब्दों में इतनी बड़ी बात - अति प्रशंसनीय रचना के लिए हार्दिक बधाई
मैंने तो खूब चाहा था
कि आज रात...
चांद से बोल-चाल बंद रखूं।
पर, तुमने आज भी चेहरा छिपा रखा था
बेजुबान शब्दों की खामोशी में।
क्या कहूँ....? आपने तो निःशब्द कर दिया है.... बहुत सुंदर शब्दों के साथ.... मनभावन रचना....
बहुत रूमानी.
acchee rachana.........
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण.
बहुत खूब सुन्दर रचना
आभार
मैंने तो खूब चाहा था
कि आज रात...
चांद से बोल-चाल बंद रखूं।..kamaal ke lafz hain
मेरे जलते हुए सीने में
सूरज रोज डूबता है।
और हर रात मैं -
सुबह तक चांद से बातें करता हूं ..
वाह .. कितना नाज़ुक एहसास है ... चाँद से बोल चल बंद रखूं ...
bada gahre utar gaye is baar to.......gazab kar diya.........bahut hisundar bhav sanyojan.
मेरे जलते हुए सीने में
सूरज रोज डूबता है।
sundar abhibyakti hai...
वाह .. कितना नाज़ुक एहसास है ... चाँद से बोल चल बंद रखूं ...
मैंने तो खूब चाहा था
कि आज रात...
चांद से बोल-चाल बंद रखूं।
पर, तुमने आज भी चेहरा छिपा रखा था
बेजुबान शब्दों की खामोशी में।
sunder sabdo se sajaya hai aapne rachna ko kahi se bhi ojhal nahi hui najro ke samne se.....badhai
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