Wednesday 2 November 2011

बदल गया है बस आदमी ही।

अभी भी चिडि़या आती है
करोड़ों इंसानों के
करोड़ों मकानों के आंगन में

अभी भी तकरीबन सारे बीज
धरती की किसी भी जमीन पर
आसानी से उग आते हैं

अभी भी मछलियां
रहने के लिए
जहरीले नदी नालों या
अनछुए सागरों में
फर्क नहीं करतीं

अभी भी
अधिकतर शेर जानवरों को ही खाते हैं
आदमियों को नहीं

अभी भी सांप बिच्छू चमगादड़
खडहरों जंगलों और वीरानों में ही रहते हैं
आदमी की रोज रहने वाली जगहों पर नहीं

कभी भी जंगल, जानवरों ने
कुदरत ने
आदमी से कुट्टी नहीं की


कभी भी शेर, चीते, भालू
चिडि़या, बाज, गिद्ध,
मछली, सांप, चमगादड़
इतनी संख्या में नहीं हुए
कि आदमी की प्रजाति को ही खत्म कर दें

अभी भी
सब कुछ कुदरती है
लाखों सालों पहले जैसा

क्यों बदल गया है
बस
आदमी ही।

13 comments:

Sunil Kumar said...

मुश्किल प्रश्न , विचारणीय ..........

Gyan Darpan said...

बढ़िया प्रस्तुति

Gyan Darpan
Matrimonial Service

Pallavi saxena said...

बढ़िया प्रस्तुति कहाँ जा रहे हैं हम विचारणीय आलेख
समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

GeetS said...

hmm nice poem ....

Atul Shrivastava said...

बेहतरीन।
यक्ष प्रश्‍न।

वाणी गीत said...

जानवरों ने तो अपनी आदतें नहीं बदली , आदमी ही उनसे सीख गया ...
बेहतरीन !

दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-687:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

सुन्दर रचना....
सादर बधाई...

दिगम्बर नासवा said...

यही एक सच है जिसको आदमी समझना नहीं चाहता ...

चंदन said...

बहुत बढ़िया...पूरा सच!

अनामिका की सदायें ...... said...

jabardast rachna jo hairan kar rahi hai ki itni saadgi se bhi sach ko kaha ja sakta hai.

amrendra "amar" said...

behtreen prastuti

pragya said...

सच कुछ भी तो नहीं बदला फिर आदमी ही क्यों बदल गया.....

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