अभी भी चिडि़या आती है
करोड़ों इंसानों के
करोड़ों मकानों के आंगन में
अभी भी तकरीबन सारे बीज
धरती की किसी भी जमीन पर
आसानी से उग आते हैं
अभी भी मछलियां
रहने के लिए
जहरीले नदी नालों या
अनछुए सागरों में
फर्क नहीं करतीं
अभी भी
अधिकतर शेर जानवरों को ही खाते हैं
आदमियों को नहीं
अभी भी सांप बिच्छू चमगादड़
खडहरों जंगलों और वीरानों में ही रहते हैं
आदमी की रोज रहने वाली जगहों पर नहीं
कभी भी जंगल, जानवरों ने
कुदरत ने
आदमी से कुट्टी नहीं की
कभी भी शेर, चीते, भालू
चिडि़या, बाज, गिद्ध,
मछली, सांप, चमगादड़
इतनी संख्या में नहीं हुए
कि आदमी की प्रजाति को ही खत्म कर दें
अभी भी
सब कुछ कुदरती है
लाखों सालों पहले जैसा
क्यों बदल गया है
बस
आदमी ही।
13 टिप्पणियां:
मुश्किल प्रश्न , विचारणीय ..........
बढ़िया प्रस्तुति
Gyan Darpan
Matrimonial Service
बढ़िया प्रस्तुति कहाँ जा रहे हैं हम विचारणीय आलेख
समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
hmm nice poem ....
बेहतरीन।
यक्ष प्रश्न।
जानवरों ने तो अपनी आदतें नहीं बदली , आदमी ही उनसे सीख गया ...
बेहतरीन !
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-687:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
सुन्दर रचना....
सादर बधाई...
यही एक सच है जिसको आदमी समझना नहीं चाहता ...
बहुत बढ़िया...पूरा सच!
jabardast rachna jo hairan kar rahi hai ki itni saadgi se bhi sach ko kaha ja sakta hai.
behtreen prastuti
सच कुछ भी तो नहीं बदला फिर आदमी ही क्यों बदल गया.....
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