गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

जरा सी जिंदगी,किस किस तरह जीते

बड़े दिनों बाद... पागलपन आया याद



इक जरा सी जिंदगी, किस किस तरह जीते
बस एक ही क़तरा था, किस—किस तरह पीते.

सूरज आता, सताता कि कुछ कर
रात कहती, जिओ जैसे हों सुभीते

जो गये, बस खो गये, अब ढूंढे कैसे?
ढूंढो... जब त​क ये जिंदगी ना बीते.

ज़िंदगी ने लिया ही लिया, दिया क्या ?
ख्वाहिशें निकली हीं थी, लगे पलीते.


3 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ज़िंदगी ने लिया ही लिया, दिया क्या ?
ख्वाहिशें निकली हीं थी, लगे पलीते....

Zindagi deti bas eh hi baar hai ... Aur pal pal leti hai ... Mout ane tak ..
Lajawab sher ...

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

वाह !

vandana gupta ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (6-4-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
सूचनार्थ!

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