गुरुवार, 18 अगस्त 2011

शुक्र मनाने की वजह


शुक्र मनाओ
कि आज सुबह सुबह
बिना कोई गोली-चूरन लिये
भली-भांति पेट साफ हो गया।

शुक्र मनाओ
कि कोई नौकरी या धंधा है
और तुम्हें पहुंचना है वक्त पर
नहीं सोचना है कि
कि सारा दिन घर पर क्या करना है।

शुक्र मनाओ
घर से निकले तो टूव्हीलर पंचर नहीं हुआ
पंचर हुआ भी तो
एक आध किलोमीटर पर ही पंचर बनाने वाला मिल गया
और उसने तुम्हारी लाचारी के ज्यादा रूपये नहीं लिये।

शुक्र मनाओ
सड़क पर पीछे से किसी 4 व्हीलर ने नहीं ठोका।
गड्ढो से सकुशल निकल गये।
किसी गड्ढे में नहीं गिरे,
गिरे भी तो
नहीं गिरा, तुम्हारे ही ऊपर, तुम्हारा टूव्हीलर
और तुम्हारा टूव्हीलर तुम्हारे ही ऊपर गिर भी पड़ा तो
पीछे से आती बस तुम्हें,
तुम्हारे टूव्हीलर सहित रौंदती नहीं चली गई।

शुक्र मनाओ
सड़क पर धूल धुआं गड्ढे और ट्रेफिक के बीच
बिना हेलमेट, मुंह पर कपड़ा लपेट कर चलते हुए
किसी पुलिसिये ने नहीं रोका
तुम्हारी जेब को नहीं लगा
दो चार सौ का धोखा


शुक्र मनाओ
दफ्तर या धंधे पर
रोज की बोरियतभरी जिन्दगी की
खुन्नस और चिड़चिड़ापन नहीं भड़का
तुम्हारी नौकरी बची रही।
तुम्हारा धंधा चलता रहा।

शुक्र मनाओ
जिन्दगी के चार पहर और
जैसे तैसे कट गये।

शुक्र मनाओ
जब नौकरी धंधे से लौटे
तो तुम्हारी बीवी भागी नहीं
घर पर ही मिली
बच्चे कुछ नया नहीं सीख रहे थे तो क्या हुआ
किताबों से देख देख कर
कॉपि‍यां तो भर रहे थे।

शुक्र मनाओ
मां का कान नहीं बह रहा
बाप की डायबिटीज कंट्रोल में है
तुम्हारा अपना पेट
नई दवाईयों से संतुष्ट है
बीवी का पीठ दर्द; बाम से ही ठीक हो जाता है

शुक्र मनाओ
पड़ोसी नहीं खरीद पाया है कार
और वो जगह अभी भी खाली है जिस पर
तुम खड़ी किया करोगे वो कार
जो पिछले 10 बरस से नहीं आई।

शुक्र मनाओ
इसलिए नहीं कि
कोई भगवान या खुदा
"होता है" या "नहीं होता है"

शुक्र मनाओ
बस इसलिए कि
तुम शहर में हो
और सपरिवार सांस ले पा रहे हो
हजारों बीमारियों सहित।

10 टिप्‍पणियां:

दीपक बाबा ने कहा…

बेहतरीन......

शुक्र है
कि बैठे हैं.
कविता पढ़ने के लिए..
और
न कुछ सूझते हुए भी..
टीप दे देते हैं..
शुक्र है.

Arun sathi ने कहा…

woh......bahut hi yatharth...khoob..

Shalini kaushik ने कहा…

शुक्र मनाओ
इसलिए नहीं कि
कोई भगवान या खुदा
"होता है" या "नहीं होता है"
बहुत सही व्यंग्य किया है आपने.सार्थक प्रस्तुति
वह दिन खुदा करे कि तुझे आजमायें हम

पी.एस .भाकुनी ने कहा…

शुक्र मनाओ
जिन्दगी के चार पहर और
जैसे तैसे कट गये।......................
वाह ! सुंदर अभिव्यक्ति ,

केवल राम ने कहा…

आज हमने भी शुक्र मना लिया ....आपकी एक अच्छी कविता पढ़कर ...आपका आभार

amrendra "amar" ने कहा…

sunder shabd hai bahut khoob bhav.BEHTREEN RACHNA

डॉ.चन्द्रजीत सिंह ने कहा…

बहुत कुछ सोचने को दे दिया....शुक्रिया
डॉ चन्द्रजीत सिंह
lifemazedar.blogspot.com
kvkrewa.blogspot.com

pragya ने कहा…

बेहतरीन...सच है हमें शुक्र मनाना चाहिए इसका कि हम कम से कम कुछ साधारण चीज़ें कर सक पाने में तो सक्षम हैं!

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

वाह ....पूरी जिंदगी की आपाधापी और भागमभाग का ब्योरा पढ़ने को मिला

बहुत खूब

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

सुन्दर...
सादर...

एक टिप्पणी भेजें