पा गये हैं जो मंजिले वो, किसी को क्योंकर याद करें
राहों में खो जाने वाले, कुछ-कुछ पागल होते हैं
मजनुओं की कुत्तों से यारी, रांझों को खंजर का प्यार
इश्क से वफा निभाने वाले, कुछ-कुछ पागल होते हैं
वो मजबूर था, वो गाफिल था दुनियां की खुदगर्जी से,
खुद को ये समझाने वाले, कुछ-कुछ पागल होते हैं
शहर में सजी ख्वाहिशें सारी, पर दश्त से जिनकी यारी
वीरानों में गाने वाले, कुछ-कुछ पागल होते हैं
जिन्दगी से वो ऐसे गये, किस देस-ठिकाने खबर नहीं
"अजनबी" यादें सजाने वाले, कुछ कुछ पागल होते हैं
राहों में खो जाने वाले, कुछ-कुछ पागल होते हैं
मजनुओं की कुत्तों से यारी, रांझों को खंजर का प्यार
इश्क से वफा निभाने वाले, कुछ-कुछ पागल होते हैं
वो मजबूर था, वो गाफिल था दुनियां की खुदगर्जी से,
खुद को ये समझाने वाले, कुछ-कुछ पागल होते हैं
शहर में सजी ख्वाहिशें सारी, पर दश्त से जिनकी यारी
वीरानों में गाने वाले, कुछ-कुछ पागल होते हैं
जिन्दगी से वो ऐसे गये, किस देस-ठिकाने खबर नहीं
"अजनबी" यादें सजाने वाले, कुछ कुछ पागल होते हैं
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10 टिप्पणियां:
क्या बात है! लाजवाब!! बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
फ़ुरसत में … आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के साथ (दूसरा भाग)
ऐसे ही पागलपन में जीवन व्याख्यायित होता है.
आदरणीय राजेय शा जी
नमस्कार !
मजनुओं की कुत्तों से यारी, रांझों को खंजर का प्यार
इश्क से वफा निभाने वाले, कुछ-कुछ पागल होते हैं
क्या बात है जनाब ! कमाल लिखा है … बधाई !
>~*~मकरसंक्रांति की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
वाह जी सुंदर
बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
हिन्दी को ऐसे ही सृजन की उम्मीद ।
धन्यवाद
इश्क से वफा निभाने वाले, कुछ-कुछ पागल होते हैं---
हर पँक्ति दिल को छूती हुयी। बधाई इस रचना के लिये।
सुंदर प्रस्तुति राजेय शा जी| ये पंक्तियाँ जबरदस्त रहीं:-
वो मजबूर था, वो गाफिल था दुनियां की खुदगर्जी से,
खुद को ये समझाने वाले, कुछ-कुछ पागल होते हैं
गहरे एहसास है हर पँक्ति में ...... सुंदर प्रस्तुति.
इस पागल जज़्बात को सलाम....हर किसी में इतनी हिम्मत नहीं कि कुछ-कुछ से पागल हो जाएँ...
बहुत खूब
कुछ दिल से
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