शनिवार, 7 अगस्त 2010

वक्त जाने क्या दिखलाता है?


बर्बादी में कसर नहीं, फिर क्यों दिल घबराता है
बिखरे-बिखरे मन को, हर टूटा आईना डराता है

बैचेन हवा, है नींद उड़ी, फिर भी मुर्दों सा पड़े रहें
तन्हाई है, गहराई तक, सपना भी नहीं आता है

सालों तक, हम रहे तरसते, वो सूरत फिर दिखी नहीं
कब मिलता वो ढूंढे से, इक बार जो दिल से जाता है

तेरी बातें अपने तक, आंसू, आहें, चाहें सब
देखते हैं खामोश जुबां का अमल, क्या असर लाता है

अजनबी सा हर दिन मिलता है, गुजर जाता खामोशी से
हर वक्त यही लम्बी सोचें, वक्त जाने क्या दिखलाता है?

3 टिप्‍पणियां:

K.P.Chauhan ने कहा…

barbaadi me kasar nahin fir dilkyon ghabraataa hai ,
bahut hi achchhee kawitaa hai .kaabile taarif hai dil khush ho gyaa

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत खूब !!

बेनामी ने कहा…

ek behtreen rachna......
Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....

A Silent Silence : Zindgi Se Mat Jhagad..

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