तुमको अपना समझ लिया था,
फिर से गलत अनुमान था मेरा।
इन्कार उन्होंने नहीं किया था
बस इतना सम्मान था मेरा।
सारे सितम हँस के सहता था
ये किस पर अहसान था मेरा?
जीते-जी कभी नहीं मिला था,
हाँ! वही तो भगवान था मेरा।
बरसों पहले भूल गया था,
क्या पहला अरमान था मेरा।
रोता और भड़क जाता था,
अभी जिन्दा इंसान था मेरा।
घुड़की-गाली सुन लेता था,
अहं नहीं परवान था मेरा।
5 टिप्पणियां:
रोता और भड़क जाता था,
अभी जिन्दा इंसान था मेरा।
Aaj ke dour mein insaan ka jinda rahna bahut mushkil hota ja raha hai ... saarthak sher hai bahut hi ...
तुमको अपना समझ लिया था,
फिर से गलत अनुमान था मेरा।
... bahut badhiyaa
रोता और भड़क जाता था,
अभी जिन्दा इंसान था मेरा।
बेहद उम्दा भाव्।
बहुत सुन्दर रचना है ।
वाह जी सुंदर.
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