जब भी चला तेरी याद का मौसम, भरी दोपहरी रात हुई
मयखाने की गलियां जागीं, दुनियां के गम की बात हुई
आंखों से खामोशी बोली, आहटों ने अचरजता घोली
इच्छाओं की बन्द जेल में, कई सलाखें डर के डोलीं
सपनों के रैन बसेरे छूटे, सूर्य किरनों में भ्रम सब छूटे
देह रसायनों के भाटे पर, प्रेम की फेन ने जीवन लूटे
पूनम की रात के भेद रहे, हमने तेरे स्मृति चिन्ह सहे
आशा के सारे भवन-महल, बालू की भीत से गिरे ढहे
मयखाने की गलियां जागीं, दुनियां के गम की बात हुई
आंखों से खामोशी बोली, आहटों ने अचरजता घोली
इच्छाओं की बन्द जेल में, कई सलाखें डर के डोलीं
सपनों के रैन बसेरे छूटे, सूर्य किरनों में भ्रम सब छूटे
देह रसायनों के भाटे पर, प्रेम की फेन ने जीवन लूटे
पूनम की रात के भेद रहे, हमने तेरे स्मृति चिन्ह सहे
आशा के सारे भवन-महल, बालू की भीत से गिरे ढहे
6 टिप्पणियां:
जब भी चला तेरी याद का मौसम, भरी दोपहरी रात हुई
मयखाने की गलियां जागीं, दुनियां के गम की बात हुई
बहुत खूब।
bahut hi achhi rachna hai
वाह! बहुत बेहतरीन!
जब भी चला तेरी याद का मौसम, भरी दोपहरी रात हुई
मयखाने की गलियां जागीं, दुनियां के गम की बात हुई
Kitni sundar rachna hai!
sunder prastuti......... Bhavo kee...
जब भी चला तेरी याद का मौसम, भरी दोपहरी रात हुई
मयखाने की गलियां जागीं, दुनियां के गम की बात हुई
बहुत खूब ....!!
आंखों से खामोशी बोली, आहटों ने अचरजता घोली
इच्छाओं की बन्द जेल में, कई सलाखें डर के डोलीं
सच्चाई बयाँ करता शे'र .....!!
एक टिप्पणी भेजें