शनिवार, 27 मार्च 2010

इच्छाओं की बन्द जेल में


जब भी चला तेरी याद का मौसम, भरी दोपहरी रात हुई
मयखाने की गलियां जागीं, दुनियां के गम की बात हुई

आंखों से खामोशी बोली, आहटों ने अचरजता घोली
इच्छाओं की बन्द जेल में, कई सलाखें डर के डोलीं

सपनों के रैन बसेरे छूटे, सूर्य किरनों में भ्रम सब छूटे
देह रसायनों के भाटे पर, प्रेम की फेन ने जीवन लूटे

पूनम की रात के भेद रहे, हमने तेरे स्मृति चिन्ह सहे
आशा के सारे भवन-महल, बालू की भीत से गिरे ढहे

6 टिप्‍पणियां:

डॉ टी एस दराल ने कहा…

जब भी चला तेरी याद का मौसम, भरी दोपहरी रात हुई
मयखाने की गलियां जागीं, दुनियां के गम की बात हुई

बहुत खूब।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut hi achhi rachna hai

Udan Tashtari ने कहा…

वाह! बहुत बेहतरीन!

kshama ने कहा…

जब भी चला तेरी याद का मौसम, भरी दोपहरी रात हुई
मयखाने की गलियां जागीं, दुनियां के गम की बात हुई
Kitni sundar rachna hai!

Apanatva ने कहा…

sunder prastuti......... Bhavo kee...

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

जब भी चला तेरी याद का मौसम, भरी दोपहरी रात हुई
मयखाने की गलियां जागीं, दुनियां के गम की बात हुई
बहुत खूब ....!!

आंखों से खामोशी बोली, आहटों ने अचरजता घोली
इच्छाओं की बन्द जेल में, कई सलाखें डर के डोलीं
सच्चाई बयाँ करता शे'र .....!!

एक टिप्पणी भेजें