Sunday 26 July 2009

आपके इंतजार में

प्रतीक्षा या इंतजार मानवीय अहसासों एवं अनुभवों में घटने वाली एक घटना है। यह उन घटनाआंे में से है जो साँस लेने जैसी नियमित घटनाओं में आती है। प्रतीक्षा का अर्थ ढूंढने निकला तो यह सामग्री बन गई।

किसी इच्छा के पूर्ण होने पर उससे जन्मी अन्य इच्छा के पूर्ण होने के बीच का अंतराल प्रतीक्षा है।
जैसे हमें प्यास लगे और पानी की जगह शर्बत या शराब दी जाए तो काम नहीं चलेगा क्योंकि हमें पानी का ही इंतजार था। हमारा पूरा अस्तित्व पानी चाहता है- फीका, गीला सा, पारदर्शी, सामान्य शीतल पानी।
तो एक इच्छा से दूजी इच्छा के बीच सफर को प्रतीक्षा या इंतजार कहते हैं। प्रतीक्षा में जो प्राप्त है उस पर जो प्राप्त होने वाला है उसका अहसास ज्यादा हावी रहता है। प्राप्त होने वाले का ख्याल, कल्पनाएं और अदृश्य चित्रांकन जारी रहता है।
इंतजार अज्ञान की नहीं, अपूर्ण ज्ञान की स्थिति है। कुछ तो पता है और कुछ और पता चल जाने वाला है, स्पष्ट हो जाने वाला है - यह इंतजार का स्वरूप है।
तत्कालिक इच्छा पूरी न होना और इंतजार खत्म न होना एक ही चेहरे की दो आंखें हैं। इच्छा पूरी हो जाए और इंतजार शेष रहे तो यह एक कानी स्थिति है या इंतजार खत्म हो जाए और इच्छा पूरी न हो यह भी एक कानी स्थिति है।
धैर्य और प्रतीक्षा के बीच गहरा संबंध है। धैर्यपूर्वक इंतजार किया जाता है। अधैर्यता, धीरज न रखना और इंतजार न करना - घटने वाली घटना को समय पूर्व ही स्पष्ट करने की चेष्टा इष्ट नहीं करती। धैर्य, आशा, निराशा- आशंका से परे प्रतीक्षा की नींव है।
इच्छा के दो रूप होते हैं: आशा और आशंका। शुभ संभावना को आशा और अनिष्ट की शंका को आशंका कहते हैं। यह वाक्य सरासर गलत है कि ‘मुझे तुमसे यह आशा नहीं थी।’ यह कहना चाहिए कि मुझे यह आशंका नहीं थी।
प्रतीक्षा और धैर्य से वह भी लभ्य है जिसकी इच्छा नहीं की जा सकती, इसलिए प्रतीक्षा और धैर्य असीम को भी सीमा में ला सकता है।
प्रतीक्षा अदृश्य की गहराईयों की यात्रा है। हमने यह शेर सुना ही है: हम इंतजार करेंगे तेरा कयामत तक, खुदा करे कि कयामत हो और तू आये। सारा ताना बाना कयामत, खुदा और अपने से पुनः मिलन - जीवन को भरपूर इंतजार बना देना है।

3 comments:

Vinay said...

very good journal

Udan Tashtari said...

अच्छा आलेख.

Udayesh Ravi said...

इंतज़ार को परिभाषित करने का आपने अच्छा प्रयास किया राजेश भाई. दरअसल, इंतज़ार तो सभी करते हैं मगर मंथन बहुत कम ही लोग. आपने मंथन का जो काम शुरू किया वह स्तुत्य hai. लेकिन मेरी इच्छा hai कि इस यात्रा को और आगे बढाई जाये तो काफी रोमांच पैदा करेगा. आपसे और जिज्ञासा hai. कोशिश करें. अच्छा लगेगा.

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