Wednesday 10 December 2008

पूरनचंद प्यारेलाल का एक गीत

रब बंदे दी जात इक्को
ज्यों कपड़े दी जात है रूं
कपड़े विच ज्यों रूं है लुकया
यूं बंदे विच तू
आपे बोलें आप बुलावे
आप करे हूँ हूँ

तू माने या न माने दिलदारा
असां ते तेनू रब मनया
दस होर केडा रब दा दवारा
असां ते तेनू रब मनया

अपने मन की राख उड़ाई
तब ये इश्क की मंजिल पाई
मेरी साँसों का बोले इकतारा

तुझ बिन जीना भी क्या जीना
तेरी चैखट मेरा मदीना
कहीं और न सजदा गवारा

हँसदे हँसदे हर गम सहना
राजी तेरी रजा में रहना
तूने मुझको सिखाया ये यारा

अर्थात् परमात्मा ओर आत्मा की एक ही जात है। जैसे कपड़े में रूई छुपी है वैसे ही आत्मा में परमात्मां। वो आप ही कहता है आप ही सुनता है आप ही होने की हामी भी भरता है।
तू माने या न माने हमने तुझे रब/ईश्वर मान लिया है तू ही बता और अब कौन से द्वार पर जायें।
अपने मन को राख की तरह बना उड़ा दिया है तब हमने इश्क की यह मंजिल पाई है मेरे सांसों का इकतारा तेरी ही धुन निकालता है।
हंसते हंसते खुशी गम सहना, तेरी मर्जी की मुताबिक रहना ये तूने ही मुझे सिखा दिया है।

2 comments:

नीरज गोस्वामी said...

कपड़े विच ज्यों रूं है लुकया
यूं बंदे विच तू
आपे बोलें आप बुलावे
आप करे हूँ हूँ
vilakshan upma...great...waah.
neeraj

Udan Tashtari said...

आनन्द आ गया.

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