Wednesday 16 November 2011

बड़बड़ाना छोड़ दो

बड़बड़ाना छोड़ दो, क्या पता, तुम्हें भी पता ना चले कि तुमने क्या कह दिया है...और दुनियां वाले क्या-क्या समझ लें। बड़बड़ाना छोड़ दो, सबको खबर हो जायेगी - कि तुम सोचते कैसे हो? किन वजहों से, किन बातों का समर्थन करते हो, किन वजहों से... किन बातों के सख्त खिलाफ हो।

बड़बड़ाना छोड़ दो, सबको पता चल जायेंगे...तुम्हारे भय। बड़बड़ाना छोड़ दो, तुमने सुना नहीं- जिसे, दूसरों से छिपाना चाहते हैं, उसे, खुद से भी नहीं कहते।
बड़बड़ाना, अनजाने ही नंगे होने के तरह है। तुम्हें बड़बड़ाने से बचना चाहिये, क्योंकि तुम तो दीवारों और दरवाजों से बंद बाथरूम में भी कपड़े पहनकर नहाते हो।

बड़बड़ाना छोड़ दो- सबको पता चल जायेगी... तुम्हारे पागलपन की मात्रा।
बड़बड़ाना छोड़ दो, किसी भी रिश्ते से... सीधे-सीधे सपाट शब्दों में कहो। इससे दिल के दौरों से बचा जा सकता है।
बड़बड़ाना छोड़ दो - जो होना है, होगा ही... चाहे तुम बड़बड़ाओ या, चुप रह जाओ।

तुम परिणाम नहीं बदल सकते। ना शामिल होने से बचे रह सकते हो, इसलिए भी...बड़बड़ाना छोड़ दो। सीधे सपाट कहना भी छोड़ दो, अपने हाथों होनी को देखो। क्योंकि तुम ही जिम्मेदार हो अगर तुमने सच को छोड़ा, और किसी तरह तुम्हारी सांसें चलती रहीं और तुम उस तरह बचे रह गये, जिसे तुम जिन्दगी कहते हो।

11 comments:

दिगम्बर नासवा said...

बडबडाना अगर सच कहता है तो काहे छोड़ दो ...

kanu..... said...

kya kya chore jindagi me,aj badbadana ,kal muskurana,parso jeena....ye rachna acchi lagi...

Amrita Tanmay said...

विचारणीय..

दीपक बाबा said...

जी, हमारा तो ब्लॉग ही बंद हो जायेगा.

Sunil Kumar said...

सोंच कर बताएँगे :):)

नीरज गोस्वामी said...

इस अद्भुत रचना के लिए बधाई

नीरज

विभूति" said...

behtreen post.....

Pallavi saxena said...

सारगर्भित एवं विचारणीय अभिव्यक्ति ....

सागर said...

gahan abhivaykti....

Atul Shrivastava said...

क्‍या बात है.....

Smart Indian said...

@ बड़बड़ाना छोड़ दो। सीधे सपाट कहना भी छोड़ दो, अपने हाथों होनी को देखो।
जी, सही कहा।

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