Thursday 30 June 2011

क्‍या संकल्प करना बेवकूफी है ?

संकल्प शब्द का अर्थ है दृढ़ निश्चय, प्रण, जिद्द, प्रतिबद्धता, डटे रहना। संकल्प शब्द को समझने के लिए यदि इसे ‘सम’ और ‘कल्प’ में तोड़ें तो यह अर्थ मिलते हैं - सम का आशय है समान.. कल्प के अर्थ हैं - एक कल्प तो ‘दीर्घकाल’ वाला, दूसरा ‘कल्प’, कल्पना से जुड़ा है। इस प्रकार संकल्प के अर्थ निकले ”कुछ ऐसा उपलब्ध करने का निर्णय जो हमारी कल्पना में है या जिसे दीर्घकाल तक डटे रहने पर प्राप्त कर लिया जायेगा।“
अनेक भौतिक समस्याओं का हल संकल्प से संभव है जैसे पहाड़ को समतल कर देना, समन्दर के किसी हिस्से को सुखाना, किसी ग्रह पर जीवन खोज लेना। लेकिन संकल्प से हमारी अंर्तवस्तु, मन की समस्याएं हल करने का विचार... क्या यह संभव है? दरअसल यह नितांत ही अव्यावहारिक उपाय है क्योंकि किसी भी समस्या का निराकरण पूर्वाग्रह, जबर्दस्ती, जिद, मुर्गे की एक टांग जैसे हठ द्वारा नहीं किया जा सकता...और संकल्प और इनके अलावा क्या है? दृढ़ निश्चय से भी ऐसा प्रतीत होता है कि कमजोर निश्चय भी होते हैं, ऐसा है क्या? जिद्द भी बचकाना शब्द है। प्रतिबद्धता भी बंधन की तरह लगता है, किसी पर निर्भरता सा। डटे रहना मुर्गे की एक टांग सा है।
संकल्प के निकट ही एक शब्द है ‘कसम’। लेकिन कसम उतना अच्छा शब्द है नहीं जितना दिखता है। कसम खाने का आशय ही यह है कि आप किसी को यकीन दिलाना चाह रहे हैं और आपको एक पुष्ट आधार की तलाश है। कसम से यह साबित होता है कि जो व्यक्ति कसम खा रहा है उसकी अपनी तो कोई बिसात है नहीं... अब उसे ‘किसी की कसम खा के‘, ‘अपने कहे पर‘ भरोसा चाहिए। यहां तक कि खुद की कसम खा के भी वो यही करने की कोशिश करता है।
संकल्प शब्द का प्रयोगकर्ता अपने व्यक्तित्व को दो भागों में तोड़ता सा लगता है- यानि उसका एक हिस्सा वो ”जो काम में बाधा है“ और दूसरा ”उसके करने में प्रवृत्त।“ इस प्रकार संकल्प द्वंद्वात्मक अभिव्यक्ति देता है, जबकि द्वंद्व का कारण व्यक्ति ही है। यह द्वंद्व इसलिए पैदा होता है क्योंकि व्यक्ति किसी झूठे अहं को पुष्ट करना चाहता है, इसी अहं को पुष्ट करने का साधन है संकल्प। संकल्प शब्द यह कहता है कि कुछ है जो आप खुद ही नहीं करना चाहते पर अब आप खुद को ही ”जुबान दे रहे हैं“ और जुबान पर कायम रहेंगे, इस प्रकार संकल्प शब्द का प्रयोगकर्ता स्वयं से ही भयभीत होता है।
संकल्प के समानर्थकों में प्रण शब्द कुछ भिन्न है। प्रण - प्राण से निकला लगता है और अक्सर “प्राण-पण” के रूप में प्रयुक्त किया जाता है... ये भाव कि... कोई ऐसी बात जिसके जिए प्राण भी अर्पित किये जा सकें.. या प्राणों से निकला भाव। यानि प्राणों की समग्रता से किया जाने वाला कर्म। लेकिन इस सुन्दर शब्द को भी गलत तरीके से प्रयोग में लाया जाता है। जैसे;- मैंने प्रण किया है कि मैं यह काम सम्पन्न करके दिखाऊंगा। इस वाक्य में किसी अहंकार द्वारा; संकल्प, कसम और किसी फल के प्रति प्रतिबद्धता से भरे दुराग्रह की गंध आती है। जबकि ”मैं इस कार्य को प्राण-पण से करूंगा” इस वाक्य में प्राणों से कर्म करने का आश्वासन तो है पर फल के प्रति आसक्ति नहीं।
अब आप कहेंगे संकल्प का विकल्प क्या है? संकल्प ना करें तो क्या करें? सीधी सी बात है खुद को समझने की कोशिश करें, तथ्यपरक बनें, समस्या को गहराई से समझने की कोशिश करें, मूल प्रश्न तक जाने की कोशिश करें... क्योंकि यदि सही प्रश्न मिल गया तो उत्तर की आवश्यकता नहीं रहेगी।

Monday 13 June 2011

बारि‍श्‍ा की बूंद, ये सीधी-सादी बातें, और एक और कवि‍ता

रस्‍कि‍न बांड की कवि‍ताएं

बारि‍श्‍ा की बूंद
एक पत्ती, अपने आप में सम्पूर्ण होती है
जो कि पेड़ का एक हिस्सा भर है
और पेड़ अपने आप में सम्पूर्ण है
जो कि जंगल का एक हिस्सा भर है
और जंगल पर्वतों से समन्दर की ओर जाते हैं
और समन्दर अपने आप में सम्पूर्ण है
एक बारिश की बून्द की तरह विश्राम करता हुआ
ईश्वर के हाथ पर ।
--------------c--------------c--------------

ये सीधी-सादी बातें
बहुत अच्छी होती हैं
जिन्दगी में सीधी-सादी बातें
एक हरा धब्बा
एक छोटी सी चिडि़या का घोंसला
ठंडा और ताजा पीने सा पानी
रोटी का स्वाद
बूढ़ापे का एक गीत
यही बातें जीवन में सर्वाधिक महत्व रखती हैं
एक बच्चे की हंसी
एक पसंदीदा किताब
जंगलीपने के साथ खिलता हुआ फूल
काले अंधेरे कोने में गाता हुआ झींगुर
एक बहुत ही ऊपर उचकती गेंद
बारिश की पहली फुहार
आकाश में इन्द्रधनुष
प्रेमपूर्ण हाथ का स्पर्श
और कोई भी समय हो
यही बातें जीवन में सर्वाधिक महत्व रखती हैं
--------------c--------------c--------------

अगर चूहा दहाड़ सकता
और हाथी उड़ान भर सकता
और पेड़ आकाश के भीतर तक ऊंचे होते
अगर शेर खाना खाता,
एक बिस्कुट और एक पैग शराब
और मोटा सा आदमी उड़ सकता
अगर कंचे गीत गा सकते
और घंटियां नहीं बजती
और मास्टर साहब की नौकरी नहीं होती
अगर कछुआ दौड़ सकता
और हारा हुआ जीता जा सकता
और दबंगों को परांठे पर
मक्खन की तरह लगाया जा सके
अगर फुहारों से गीत निकले
अगर बंदूक से फूल निकले
यह दुनियां ज्यादा भली होती

Saturday 11 June 2011

किसी को उसका गिरेबां मत दिखाओ।


क्‍या होना चाहि‍ये, कहां, मत बताओ,
किसी को उसका गिरेबां मत दिखाओ।


उलझे रहने दो लफ्जों-ख्यालों-ख्वाबों में,
हकीकतों में आई मुसीबतें मत जताओ।


किसको फुर्सत है कि समझे जिन्दगी,
जैसा है, चलने दो, सवाल मत उठाओ।


मौत औरों को आती है, अभी जीने दो
मौत की बातें कर, यूं ही मत डराओ

बिजी रहने दो टुच्ची गमी-खुशी में
रूह के सन्नाटे क्या हैं, मत सुझाओ।
 -----------c-------------c-------------c-------------



  1. मैने अपने मनोचिकित्सक से कहा कि पता नहीं क्‍यों सब मुझसे नफरत करते हैं तो वो बोला - मैं उन लोगों से तो नहीं मिला पर तुम वाकई बहुत बेहूदा आदमी हो।
  2. स्त्री होने के कई फायदे हैं वो रो सकती है, सुन्दर कपड़े पहन सकती है और किसी जगह डूब रही हो तो उसे ही लोग पहले बचाते हैं।
  3. स्त्री शब्द के दोनों अर्थ एक समान है वो गर्म होती है, दबाती है और सलवटें निकाल कर अपने हिसाब से सल डाल देती है।
  4. अगर प्यार अंधा होता है तो अंतःवस्त्र इतने प्रसिद्ध, प्रचलन और मांग में क्यों रहते हैं।
  5. अगर आप बहुत आरामतलब हो गये हैं तो निश्चित ही आपको जंग भी लग गया होगा।
  6. उस व्यक्ति की जिन्दगी भयावह और दुर्भाग्यपूर्ण है जिसका जीवन बहुत ही सामान्य बीता।
  7. यदि आप आत्मविश्वास से भरे दिख रहे हैं तो कोई भी आपका फायदा उठा सकता है क्योंकि आपको खुद को ही पता नहीं होता कि आप क्या कर रहे हैं।
  8. उन सब चीजों में से जिन्हें मैने खोया, मैं अपने दिमाग की कमी सबसे ज्यादा महसूस करता हूं।- मार्क ट्वेन
  9. बुरी याददाश्त, खुशियों की चाबी है, क्योंकि आप एक ही चुटकुले पर कई बार हंस सकते हैं।
  10. कुछ लोग कहीं जाने पर खुश होते हैं और कुछ लोगों के कहीं भी जाने पर सब खुश होते हैं।
  11. दृढ़ता और हठ में ये अन्तर है कि दृढ़ता मजबूत इरादे से आती है और हठ सिरे से किसी चीज को नकारने से।
  12. पोषक आहार का पहला नियम है जो स्वादिष्ट है वो आपके लिए अच्छी चीज नहीं है।
  13. महत्वपूर्ण बात यह है कि महत्वपूर्ण चीज को कैसे महत्वपूर्ण रखा जाये - जर्मन कहावत
  14. अतीत उस नाव की तरह है जिससे हम वर्तमान की नदी पार करें ना कि अतीत की नाव को सिर पर उठाकर नदी पार करें - राजेशा
  15. आदमी के साथ खुश रहना है तो जरूरी है कि उसे आप समझें और थोड़ा बहुत प्यार दें पर अगर औरत के साथ खुश रहना है तो जरूरी है कि आप उसे ढेर सारा प्यार दें और भूल के भी उसे समझने की कोशिश ना करें।
  16. मैंने खेलना नहीं छोड़ा क्योंकि मैं उम्रदराज हो रहा हूं, मैं उम्रदराज हो रहा हूं क्योंकि मैंने खेलना छोड़ दिया है।
  17. अगर सब एक जैसा ही सोच रहे हैं तो मानिये कोई भी सोचने के मामले में गंभीर और अच्छी तरह नहीं सोच रहा है।
  18. आप एक ही बार जवान होते हैं पर हो सकता है आप हमेशा अपरिपक्व रहें।