मौत से क्यूं मैं रोज डरता रहाएक बार इश्क से होकर गुजरा
हकीकत तो मैं रोज मरता रहा
बारहा मैं खुदा से डरता रहा
सहना सब्र और समझ का रस्ताजब भी किसी का दर्द टटोला तो
बस मुसीबतों से यूं तरता रहा
मेरे दर्द पर अमृत झरता रहा
जब भी जीवन में कुछ शिवम पायाछंद में मात्राओं का संतुलन
याद में मां की, शीश धरता रहा
अर्थ के अनर्थ कई करता रहा