वो रोज सुबह सूरज की पहली किरन के साथ उठता है। ब्रश करता है, नहाता है। अगरबत्ती, पूजापाठ-जप करता है। नाश्ता करता है। बच्चों के सिर पर हाथ फेरता है। बीवी को चूमता है। ठिकाने से मोटरसाइकिल या कार निकालता है और दफ्तर चला जाता है। दफ्तर या किसी साइट पर रूटीन बंधा-बंधाया काम करता है। शाम को एक नियत समय लौटने का इंतजार करता है और घर कही जाने वाली जगह में वापस लौट आता है। जी हां ये सब बातें रोबोट किसी भी आदमी से बेहतर कर सकता है।
यदि आपको लगे कि आपकी जिन्दगी की तुलना किसी रोबोट से की जा सकती है, तो क्या यह जिन्दगी है? फिर यह भी प्रश्न उठना चाहिए कि, वो क्या चीजें हैं जो इंसान को रोबोट या परिष्कृत मशीनों से अलग करती हैं? रोज हो रहे नये आविष्कारों को पढ़ते-सुनते-देखते हुए, यह प्रश्न करना बहुत ही आवश्यक है।
याद रखिये लोहे या अन्य धातु या पदार्थों से बनी मशीनों की औसत उम्र, आदमी की औसत उम्र से बहुत ही ज्यादा है। उनके अचानक, दुघर्टना, कैंसर या हार्टअटैक जैसी बीमारियों से खत्म हो जाने की आशंकाएं भी बहुत कम हैं। परिष्कृत मशीनों या रोबोट की मरम्मत आसान और टिकाऊ है, पर आदमी की? मशीनों से पटी दुनियां, प्राकृतिक जैविक दुनियां से अत्यधिक सुविधाजनक और दीर्घजीवी होगी, हो सकता है कि मशीनों पर आश्रित आदमी की उम्र भी बढ़ जाये... तो क्या?
इस मामले में कुछ मोटी-मोटी बातें जो विचारणीय हैं ये हैं:
- रोबोट की मेमोरी में क्या डालना है या नहीं डालना है ये आदमी तय करेगा, यानि कौन सी सूचनाएं स्टोर करनी हैं या ‘‘नहीं करनी हैं’’ आदि।
- रोबोट के अपने निर्णय भी, इंसान द्वारा पूर्व नियोजित किये गये होंगे, यानि आदमी ही तय करेगा कि किसी रोबोट की किसी क्रिया के होने पर क्या प्रतिक्रया होगी।
- रोबोट में यांत्रिक गड़बड़ी होगी तो वह उसे कैसे अभिव्यक्त करेगा - रो के, गा के, या किस इंडीकेटर द्वारा.. ये भी आदमी तय करेगा, यानि रोबोट के सुख-दुख भी आदमी द्वारा तय होंगे।
- रोबोट में जो संवदेनशीलताएं डालनी हैं वो आदमी तय करेगा यानि रोबोट में कैसे सेंसर होंगे और किन सीमाओं पर वो क्या संकेत देगा, आदि।
निश्चित ही आदमी के हाथों में ही होगा कि उसके बनाये किसी रोबोट में क्या फीचर्स हों, आदमी ही तय करेगा कि उसका रोबोट कैसा हो। रोबोट में आदमी जैसी कमजोरियां ना हों, ये बात भी आदमी ही तय करेगा और उन्हें रोबोट में डालेगा ही नहीं, जैसे ;
- उसका रोबोट डरे।
- उसका रोबोट गुस्सा हो।
- उसका रोबोट गालियां बके।
- उसका रोबोट विश्वास या अविश्वास करे।
- उसका रोबोट शराब पिये और बेहोश हो जाये।
- उसका रोबोट दी गई स्टोर क्षमता से भी कहीं ज्यादा चीजें इकट्ठी करता जाये।
- उसका रोबोट वेद, कुरान, बाइबिल या किसी ग्रंथ या गुरू के अनुसार चले।
- उसका रोबोट अपना ही डुप्लीकेट बना ले और ऐसे दो-चार डुप्लीकेट मिलकर आपको (यानि किसी रोबोट के जनक को) ही धमकाने लगें।
- उसका रोबोट किसी औरत की गंध पाकर उसके पास से हिले ही नहीं और सारे काम छोड़ दे।
ये तो बस कुछ प्राथमिक बातें थीं, ऐसी ही बहुत सी बातें आप अपनी दिमागी क्षमता से ढूंढ सकते हैं।
अब इस सारी कथा-कहानी का निचोड़ ये, कि इन्सान होते हुए भी -
- ऐसा क्यों होता है कि कुछ बहुत अच्छी बातें, जो आप जानते और चाहते हैं - आपमें नहीं होतीं... और
- ऐसा क्यों होता है कि कुछ बहुत बुरी बातें, जो आप नहीं चाहते और चाहते हैं आपमें ना हों ... आप उन्हीं पर जिन्दगी भर अमल करते हैं।
4 टिप्पणियां:
रोबोट शब्द को पति शब्द से बदल कर देखें तो...
जिस तरह रोबोट आप अपनी जरूरत के हिसाब से बना सकते हैं ..
उससी तरह प्रकृति ने हमें अपनी जरूरत के हिसाब से बनाया है !!
अच्छा लेखन...........
रोचक प्रस्तुति.........................
सादर
अनु
Nice article || क्या इंसान ही रोबोट हैं click here to know
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