शनिवार, 22 अक्टूबर 2011

मैं तो बाबुल तेरे आँगन की चिड़िया

ऐ बाबुल मेरी विदाई का दिन आया
बरसों खुशियों से तेरा आंगन महकाया
बजी शहनाईयां अब चारों ओर
मुस्कुराते चेहरे और आंसुओं का जोर

पर ऐ बाबुल ये कैसी कहानी
पल में ही कैसे हो गई मैं बेगानी
कल तक तो थी तेरी आंखों का सपना
करता पराया, रिश्ता कैसा ये अपना ?

याद आयेगा अब, तेरा पलकों पर बैठाना
मेरा रूठना और तेरा मनाना
गलतियों पर तेरा सहज हो समझाना
पोंछ के आंसू गले से लगाना

जब आई मेरी सेवा करने की बारी
लोग खड़े थे द्वारे, ले डोली की सवारी
जितनी भी मिन्नते कर ले तेरी दुलारी
चिडि़या उड़नी ही है अब तेरी प्यारी

आशीषें लेकर चली हूं, किसी घर अब पराये
उन रास्तों पर चलूंगी जो तूने दिखाये
कुछ इस तरह अपने फर्जों को निभाउंगी
सबके सम्मान को चार चांद मैं लगाऊंगी

रहें सदा आबाद, बेटियां, बाबुल की कलियां
रहें सदा ही शाद, बेटियां चिडि़यां भलियां
मेरी सारी ही उम्रें, बेटियों को लग जायें
जब जिस उम्र में देखूं सदा मुस्कायें

10 टिप्‍पणियां:

Amrita Tanmay ने कहा…

चिड़िया जब-जब आएगी इस आँगन को भी चाह्कायेंगी. बहुत सुन्दर रचना.

Asha Joglekar ने कहा…

चिडियों का तो ऐसा ही है दो दिन यहां दो दिन घर पराये ।

दीपक बाबा ने कहा…

बाबुल असी उड़ जाना ..

Sunil Kumar ने कहा…

बाप बेटी के संबंधों पर भावपूर्ण रचना अच्छी लगी बधाई

संगीता पुरी ने कहा…

पर ऐ बाबुल ये कैसी कहानी
पल में ही कैसे हो गई मैं बेगानी
कल तक तो थी तेरी आंखों का सपना
करता पराया, रिश्ता कैसा ये अपना ?

गजब की रीत है इस दुनिया की ..

vandana gupta ने कहा…

बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

Smart Indian ने कहा…

हृदयस्पर्शी!

Atul Shrivastava ने कहा…

गहरे भाव।
सुंदर प्रस्‍तुतिकरण।

विभूति" ने कहा…

ऐ बाबुल मेरी विदाई का दिन आया
बरसों खुशियों से तेरा आंगन महकाया
बजी शहनाईयां अब चारों ओर
मुस्कुराते चेहरे और आंसुओं का जोर....भावपूर्ण
मार्मिक रचना.....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब ... बाबुल का घर हर चिड़िया को याद रहता है ...

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