सोमवार, 1 नवंबर 2010

ऐ मेरे मन राम संभल

इस जीवन का क्या है हल
जीना मुश्किल, मौत सरल

रोटी, कपड़ा और मकान में
दुनियां, चिंता की दुकान में
चिता के तयशुदा विधान में
सुकून की हर आशा निष्फल

हर जन माया गैल बढ़ा है
मन में सबके मैल बड़ा है
हवस का इत्र फुलेल चढ़ा है
कम पड़ता हर गंगाजल

निन्यान्वे के फेर में ओटा
बहुत हो फिर भी, लगता टोटा
उम्र का सच है, बहुत ही छोटा
बड़ा है इच्छाओं का छल

कर्म की बातें झूठी दिखतीं
सारी लकीरे झूठी दिखतीं
सारी तद्बीरें रूठी दिखती
सच लगता, बस भाग्य प्रबल


हर सीता माया-मृग पीछे
वनवासों के जंगल खींचें
सोने की लंका है पीछे
ऐ मेरे मन राम संभल

इस जीवन का क्या है हल
जीना मुश्किल, मौत सरल

5 टिप्‍पणियां:

somadri ने कहा…

मौत भी सरल नहीं है दोस्त ... भ्रम से निकालो ...लकीरों मेरे छुपा है हमारा सुनहरा कल.

Apanatva ने कहा…

ise thour se jaldee hee chutkara mile isee shubhkamna ke sath.........
kashamkash ke e acchee abhivykti.......

ZEAL ने कहा…

रोटी, कपड़ा और मकान में
दुनियां, चिंता की दुकान में
चिता के तयशुदा विधान में
सुकून की हर आशा निष्फल

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bilkul sahi likha aapne ! yahi hota hai.

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दिगम्बर नासवा ने कहा…

इस जीवन का क्या है हल
जीना मुश्किल, मौत सरल ...

Sach kaha hai .. aaj ke dour mein to mout hi sasti hai ...

Kailash Sharma ने कहा…

इस जीवन का क्या है हल
जीना मुश्किल, मौत सरल
....
जीवन की सच्चाई को बड़े सटीक ढंग से उकेरा है..लेकिन मरना भी तो आज इतना आसान नहीं रहा..

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