जब भी चला तेरी याद का मौसम, भरी दोपहरी रात हुई
मयखाने की गलियां जागीं, दुनियां के गम की बात हुई
आंखों से खामोशी बोली, आहटों ने अचरजता घोली
इच्छाओं की बन्द जेल में, कई सलाखें डर के डोलीं
सपनों के रैन बसेरे छूटे, सूर्य किरनों में भ्रम सब छूटे
देह रसायनों के भाटे पर, प्रेम की फेन ने जीवन लूटे
पूनम की रात के भेद रहे, हमने तेरे स्मृति चिन्ह सहे
आशा के सारे भवन-महल, बालू की भीत से गिरे ढहे
मयखाने की गलियां जागीं, दुनियां के गम की बात हुई
आंखों से खामोशी बोली, आहटों ने अचरजता घोली
इच्छाओं की बन्द जेल में, कई सलाखें डर के डोलीं
सपनों के रैन बसेरे छूटे, सूर्य किरनों में भ्रम सब छूटे
देह रसायनों के भाटे पर, प्रेम की फेन ने जीवन लूटे
पूनम की रात के भेद रहे, हमने तेरे स्मृति चिन्ह सहे
आशा के सारे भवन-महल, बालू की भीत से गिरे ढहे