पृष्ठ
(यहां ले जाएं ...)
Follow Now
▼
सोमवार, 7 अप्रैल 2014
तुमसे जो बात हो गर्इ् साहिब
तुमसे जो बात हो गर्इ् साहिब
हसीन हयात हो गई साहिब
शब के खामोश लब जब हिले हैं
दिन नये, रातें हैं नई साहिब
चंद लफ्जों का लेन देन महज
बस में जज़्बात ही नहीं साहिब
खयालों ने नई परवाज ली है
छोड़ दी तंग दिल जमीं साहिब
यूं हकीकत के हम मुरीद बहुत
ख्वाब में, बस तुम्हीं—तुम्हीं साहिब
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
‹
›
मुख्यपृष्ठ
वेब वर्शन देखें
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें