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शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

मौत से क्यूं मैं रोज डरता रहा


मौत से क्यूं मैं रोज डरता रहा
हकीकत तो मैं रोज मरता रहा
एक बार इश्क से होकर गुजरा
बारहा मैं खुदा से डरता रहा
सहना सब्र और समझ का रस्ता
बस मुसीबतों से यूं तरता रहा
जब भी किसी का दर्द टटोला तो
मेरे दर्द पर अमृत झरता रहा
जब भी जीवन में कुछ शिवम पाया
याद में मां की, शीश धरता रहा
छंद में मात्राओं का संतुलन
अर्थ के अन​र्थ कई करता रहा

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