Tuesday 30 April 2013

तेरी याद का इक लम्‍हा -रश्‍मि शर्मा


तेरी याद का इक लम्‍हा
मुट़ठी में बंद जुगनू जैसा है
काली अंधेरी रात में
दि‍प-दि‍प कर जलता है
बांधना चाहूं तो
कहीं दम तोड़ न दे, डर लगता है

तेरी याद का इक लम्‍हा
मुझमें पीपल की तरह उगता है
खाद-पानी की नहीं दरकार
अंधेरे, सीले से कोने में जन्‍मता है
और अपनी उम्र से पहले ही
कोई मारता है, कभी खुद मरता है

तेरी याद का इक लम्‍हा
मन में पखेरू सा कुलाचें भरता है
आकाश में जब अंदेशों के
घि‍रते हैं काले मेघ
भीगी चि‍रैया सी डरता है, और
यर्थाथ की कोटर में जा दुबकता है.....

..................... रश्‍मि शर्मा




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